मिसेज शर्मा के घर किटी-पार्टी का आयोजन था। कालोनी की महिलायें बैठी गप्पें मार रही थीं। मिसेज शर्मा की नौकरानी रज्जो चाय लेकर आयी । पर यह क्या इस कडाके की ठंडक में भी वो बिलकुल साधारण-से कपड़ों में थी । गर्म कपड़े के नाम पर एक हाफ़ ऊनी ब्लाउज भर। बस।
"अरे रज्जो, ऐसी ठंड पड़ रही है, तू गर्म कपड़े क्यों नहीं डाल लेती ?", मिसेज गुप्ता पूछ बैठीं ।
रज्जो कुछ नहीं बोली। चाय की ट्रे रख कर चली गई।
"मिसेज गुप्ता इन लोगो को ठंड नहीं लगती, जाड़ा हो या गर्मी.. ये बिता लेतें हैं.." कहते हुए मिसेज शर्मा का मुँह कैसा तो हो आया।
"ऐसी बात नहीं है मिसेज शर्मा, आपकी नौकरानी की ही उम्र की मेरे घर पर भी एक नौकरानी है, पिछले जाड़े में उसे सर्दी लग गई थी। महारानी एक हफ़्ते बीमार रहीं। घर का सारा काम तो करना ही पड़ा, तीमारदारी करनी पड़ी वो अलग। दवा-डॉक्टर का जो खर्च हुआ, वो ऊपर से। इस बार तो जाड़े का मौसम शुरू होते ही मैंने उसे ऊनी शाल, स्वेटर, कम्बल सबकुछ दे दिया है.. कि महारानी की तबियत कहीं फिर नासाज न हो जाए..",
"आप ठीक कह रही हैं मिसेज गुप्ता, मैं भी कल इसके लिए गर्म कपड़े दिलवा ही देती हूँ। कहीं इसकी भी तबियत-वबियत बिगड़ गई तो लेने के देने पड़ जायेंगे"
पार्टी समाप्त हो गयी थी। एक-एक कर सभी अपने-अपने घर को निकल लीं।
"मिसेज गुप्ता, तुम्हारे घर तो नई नौकरानी आयी है न ?.. जहाँ तक मुझे पता है, इससे पहले तो तेरे घर कोई नौकरानी भी नहीं थी !"
"हां संगीता, तुम ठीक कह रही हो.."
"तो फिर मिसेज शर्मा से तुम झूठ क्यों बोल गयीं ?"
"अरे, तुम उन्हें नहीं जानती.. यदि मैं सीधे-सीधे कह देती कि नौकरानी को गर्म कपड़े दिलवा दीजिये तो वो उसे कपड़े तो क्या दिलवाती, मुझसे झगड़ ही पड़तीं.. उस बिचारी रज्जो की हालत तो देखी न तुमने ? कैसे इस कड़ाके की ठंडक में सिकुड़ी जा रही थी.. ..
.. यदि जरा सा झूठ किसी का भला कर दे ......तो झूठ अच्छे हैं ना.... !!!.."
पिछला पोस्ट : लघुकथा : कृष्ण पक्ष
Comment
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया डॉ भावना तिवारी जी |
आये दिन इस तरह की घरों पर बात होती रहती है, पर इसे कहानी का रूप दे
आदरणीय बागी सर प्रणाम, बहुत ही बारीके से लिखी गई सुन्दर सीख देती हुई लाजवाब लघु कथा हेतु हार्दिक बधाई.
सदाशयता से बोला गया झूठ सौ सत्य के सामान है...
मिसेज शर्मा जैसी मानसिकता के लोग सीधी बातें नहीं समझ सकते, उन्हें घुमा कर ही समझाना पढता है.
आम जन जीवन में जहां तहां व्याप्त ऐसी मानसिकता, जो सिर्फ अपना निहित स्वार्थ भर देखते हुए या फिर महज दिखावे के लिए समाज में मानवीयता की चादर ओढती है....उसे उजागर करती सुन्दर लघुकथा पर हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी.
//यदि जरा सा झूठ किसी का भला कर दे ......तो झूठ अच्छे है ना....'//
इस पंक्ति में झूठ अच्छे है ना में अच्छा के स्थान पर अच्छे टंकित हो गया है.शायद.
एक सीख देती हुई लघुकथा सही है जिससे किसी का भला हो उस झूठ पर तो भगवान् भी नाराज नहीं होंगे बहुत बहुत बधाई गणेश जी इस सार्थक लघु कथा पर ।
कहा गया भी गया है प्रियञ्चनानृतं न ब्रुयात् ... यानि प्रिय लगते झूठ न बोलें. हम नीति के अनुसार सामन्यतया इसी कहे का अनुपालन भी करते हैं. लेकिन इस कथन के समानान्तर एक और उक्ति है.. यद्भूतहितमत्यन्तं तत्सत्यमिति धारणा.. अर्थात् जो अन्यान्यों का (सार्थक) भला कर सके (वस्तुतः) वही सत्य सत्य है ऐसी ही धारणा श्रेयस्कर है.
इस लघुकथा के लिए अतिशय बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ, गणेशभाई.
शुभ-शुभ
वाह! क्या बात है!
आपकी कथा ने बिल्कुल सत्य कहा - ''जरा-सा झूठ किसी का भला कर दे तो उसे झूठ नहीं कहते।''
ये तो सच से महान है।
मेरी भी यही धारणा है।
यदि जरा सा झूठ किसी का भला कर दे ......तो झूठ अच्छे है ना.... !!!.."
संदेश देती सार्थक कहानी ..बधाई ..
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