‘क्या कहा कालेज की ओर से ट्रिप में जा रही हो I साथ में लडके भी होंगे ?’- माँ ने पूछा I
‘हां होंगे, तो क्या ? आजकल बहुतेरे उपाय हैं I आपकी नाक नहीं कटेगीI ‘
(मौलिक / अप्रकाशित )
Comment
आपकी कलम की खूबी है कि कम स कम शब्दों में बहुत कह लेती है, और इतना ही नहीं, भावपूर्ण और प्रभावशाली भी है।बधाई, भाई गोपाल नारायन जी।
जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,मैं भी जनाब बाग़ी जी से सहमत हूँ,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आ० बागी जी , आप इस पोस्ट पर आये , मैं ह्रदय से अनुग्रहीत हुआ आपका सम्मति से मैं बिलकुल सहमत हूँ I आगे भी ऐसे ही मार्गदर्शन की उम्मीद करता हूँ I आपका बहुत- बहुत आभार I
लघुकथा में कल्पना का पुट काल और परिवेश के अनुसार दी जाती है, किन्तु यह यथार्थ की धरातल पर होने से लघुकथा की खूबसूरती बढ़ती है ।
यहाँ दो चीजें हैं, माँ द्वारा पूछा जाना और बेटी का जवाब।
माँ द्वारा किया गया संवाद यह दिखाता है कि वह परिवार सामान्य भारतीय परिवार है और उसमें बेटी द्वारा दिया गया तीक्ष्ण जवाब बिलकुल अप्रत्याशित लगता है । यदि बेटी का स्वभाव उस तरह का होता तो माँ कभी वैसा प्रश्न न करती और यदि माँ ऐसा प्रश्न कर रही है तो बेटी कभी ऐसा उत्तर न देती ।
हाँ, वही बात इशारों में कही जा सकती थी जैसे...
माँ आप चिंता न करों, आपकी बेटी समझदार है, जीन्स की पैकेट में रखी गोली को हाथ से दबाते हुए बोली ।
या कुछ और ...
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