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अधिकारों की नई परिभाषा

काफी प्रतीक्षा के बाद जनरल मैनेजर वनिता सिंह को अकेले देख कर शिवानी ठाकुर उनके चैंबर में प्रविष्ट हुयी। मैडम अपनी कार्य-शैली के अनुसार सिर झुकाये कुछ पढ़ने में व्यस्त बनी रहीं। शिवानी ने विनम्रता से बैंक जाकर ए टी एम् कार्ड रिसीव करने हेतु अनुमति माँगी।

उन्होंने सिर झुकाये ही कहा, “लिखित में लाइए।”

“मैडम, मैं अवकाश नहीं माँग रही हूँ , बैंक जाकर तुरंत वापसी कर लूंगी।

“सुना नहीं? लिखकर लाओ कि तुम कार्यालय के समय में अपना व्यक्तिगत कार्य करने जाना चाहती हो।”

शिवानी एक कर्मठ व आकर्षक कर्मचारी थी। उसकी खूबियां यदा-कदा उच्च अधिकारियों को हज़म नहीं हो पाती थीं। जिनमें से एक वनिता जी थीं।

वनिता जी के व्यवहार से शिवानी एक बार पुनः आहत हुई किंतु अधिकारी तो अधिकारी ही ठहरा, सो वह चुपचाप बाहर आ गयी।

कॉरिडोर में मिले अपने कनिष्ठ कर्मचारियों की खुशी का कारण जान शिवानी उल्टे पांव अधिकारी के कमरे में जा घुसी।

मैडम, आपसे जानना चाहती हूँ कि यदि मुझे अनुमति नहीं दी गयी तो उन्हें क्यूँ?

शिवानी जी, मैं आपकी अधिकारी हूँ, आप मेरी नहीं। यह मेरा निर्णय है की मैं किसके साथ कैसा सुलूक करुँ। इस संस्था की सर्वोच्च मुखिया होने की हैसियत से सारे अधिकार मेरे पास सुरक्षित हैं। आपको अहसास होना चाहिए कि मैं प्रशासनिक आधार पर कोई भी कार्यवाही कर आपका सुख-चैन सब छीन सकती हूँ।

शिवानी कहना तो बहुत कुछ चाहती थी किन्तु ...

मौलिक व् अप्रकाशित।

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Comment by Samar kabeer on September 7, 2019 at 11:42am

मुहतरमा ऊषा जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

रचना के साथ विधा भी लिख दिया करें ।

कृपया ध्यान दे...

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