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साँसों की बैसाखी :

साँसों की बैसाखी :

जोड़ता है
अनजाने रिश्ते
तोड़ता है
पहचाने रिश्ते
जाने और अनजाने में
जान से कीमती
मोबाइल

साँसों का पर्याय है
जीवन का अध्याय है
किसी की जीत है
किसी की मात है
न उदय का भान है
न अस्त का ज्ञान है
हाथों में जहान है
स्वयं से अनजान है
इंसान को चलाता
एक और इंसान है
मोबाइल

चुपके से हंसाता है
चुपके से रुलाता है
सन्देश आता है
सन्देश जाता है
मरीचिका अपनाता है
यथार्थ से कतराता है
क्षण कोई भी हो जीवन का
बिना उसके न भाता है
समय गुजरता जाता है
अंत करीब आता है
घबराना नहीं
अंतिम अंत तो
सबके जीवन में आता है
निश्चिंत रहो
तुम चलो
मैं अभी आता हूँ
अंतिम क्षण तक साथ निभाऊंगा
अस्थि गंगा तक बहा कर आऊँगा
संकेत ध्वनि बजती रहती है
सन्देश सांत्वना का आते रहते हैं
आस पास की भीड़ में
यथार्थ और आभास का
फ़र्क धुंधला जाता है
सांसें डूबने लगती हैं
आँखें मुंदने लगती हैं
देह शून्यता की ओर बढ़ती है
अपने चिर परिचित अंदाज़ में
वो निस्पंद हथेलियों में
ज़िंदगी की तरह ध्वनित होता है
और बार बार होता है
देर तक होता है
प्रत्युत्तर के अभाव में
हलचल की आस में
सो जाता है
इंसान की मृत हथेलियों में
वर्तमान साँसों की बैसाखी
मोबाइल

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 307

Comment

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Comment by Sushil Sarna on May 13, 2019 at 4:49pm

मंच के स्नेह वंचित रचना। ..... ????

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