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मतदाता को फाँसने, डाल रहे हैं जाल।
नेता आपस में सभी, कीचड़ रहे उछाल।।
कीचड़ रहे उछाल, मची है ता ता थैया।
नागनाथ हैं एक, दूसरे साँप नथैया।।
हर नेता ही रोज, निराले ख्वाब दिखाता।
सारे नटवरलाल, करे अब क्या मतदाता।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

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Comment by Hariom Shrivastava on April 12, 2019 at 9:10pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब।

Comment by Hariom Shrivastava on April 12, 2019 at 9:09pm

हार्दिक आभार आदरणीया नीलम उपाध्याय जी।

Comment by Hariom Shrivastava on April 12, 2019 at 9:08pm

हार्दिक आभार आदरणीय ब्रजेश कुमार 'ब्रज' जी।

Comment by Hariom Shrivastava on April 12, 2019 at 9:08pm

हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पाण्डे जी। आपकी उपस्थिति व प्रेरक प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 6, 2019 at 2:51pm

वाह आदरणीय वाह .. 

कुण्डलिया का कथ्य बिल्कुल सही है. बधाई स्वीकारें .. किन्तु, कम से कम दो छंद और होते. 

शुभ-शुभ

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 4, 2019 at 11:23am

वाह वाह खूब रचना हुई आदरणीय श्रीवास्तव जी..

Comment by Neelam Upadhyaya on April 3, 2019 at 12:27pm

वाह ! अभी जो माहौल बन रहा है उसके लिए बहुत ही उपयुक्त रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी।

Comment by Samar kabeer on April 3, 2019 at 12:06pm

जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छा कुण्डलिया छन्द लिखा आपने,बधाई स्वीकार करें ।

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