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ज़माने के आशियाने (लघुकथा) :

 मिर्ज़ा मासाब को रिटायर होने में आठ-दस साल ही बाक़ी थे। परिवार के प्रति सारे फ़र्ज़ अदा कर चुके थे । एक बढ़िया सा मकान हो जाये और हज अदा हो जाये; बस यही आरजू रह गई थी। पैसों का इंतज़ाम तो हो गया। अब इस सदी में मुल्क के ऐसे हालात में इस बस्ती का पुराना घर बेचकर नये ज़माने का मकान कब, कहां व कैसे बनवाएं या बना बनाया ख़रीदें; बस यही उनके दिमाग़ में था। इसी सिलसिले में एक चर्चित सोसाइटी में वे अज़ीज़ दोस्त महफ़ूज़ का फ्लैट देखने पहुंचे। मुआयना किया। जानकरियां जमा कीं। सकारात्मक व नकारात्मक पहलुओं पर बातचीत हुई।


"सब कुछ बढ़िया ही है! बस दूसरी क़ौम के लोगों में अकेले पड़ गये हो यहां! माहौल वैसे भी ठीक नहीं है! ख़ुदा ख़ैर करे!" मिर्ज़ा जी ने फ्लैट की बालकनी में खड़े होकर दोस्त से कह कर उसकी दुखती रग पर हाथ रख ही दिया।


"क्या करूं दोस्त! नये ज़माने की मांग और मार है! अम्मी-अब्बू और जॉइंट फेम्अलि को छोड़ना तो मैं भी नहीं चाह रहा था। लेकिन बीवी-बच्चों की ख़ातिर उन्हें उस क़ैद से बाहर कर ही दिया!" यह कहते हुए महफ़ूज़ के माथे पर  कुछ शिकनें उभर आईं।


"दूसरी बात यह भाई... न तो तुम्हें यहां कोई अज़ान सुनाई देगी और न ही नमाज़ अदा करने के लिए नज़दीक़ कोई मस्जिद!" मिर्ज़ा मासाब के इन लफ़्ज़ों ने महफ़ूज़ को फ़िर से विचलित कर दिया।


"लेकिन यहां बुद्धिजीवियों के बीच महफ़ूज़ हूं दोस्त और घर की कलह भी किसी को सुनाई नहीं देगी! सारी सहूलियतें हैं न यहां!" अपनी नम आंखें पोंछते हुए उसने जवाब दिया।


"बुद्धिजीवी! मुल्क का माहौल जानते हुए भी तुम्हें उन पर ऐतबार है!" मिर्ज़ा मासाब ज़रा झुंझलाकर बोले।


"ऐतबार और एतराज़ जैसी कोई बात अहम नहीं! अहम तो है आपसी समझ, मुहब्बत और अख़लाक़ मेरे भाई!" महफ़ूज़ ने मिर्ज़ा मासाब के गले में हाथ डाल कर कहा।


(मौलिक व अप्रसारित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 11, 2019 at 7:42pm

मेरे इस रचना पटल के अवलोकन और मुझे यूं प्रोत्साहन हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब, आदरणीय समर कबीर साहिब और आदरणीया नीलम उपाध्याय साहिबा।

Comment by Neelam Upadhyaya on March 6, 2019 at 3:52pm

आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी, नमस्कार। अच्छी लघुकथा की रचना। प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on March 5, 2019 at 3:34pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 4, 2019 at 3:50pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बेहतरीन लघुकथा।

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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