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भारत माता करे पुकार...

मुझको भारत माँ कहते थे , करते थे मेरी जयकार।

पुलवामा में बेटे मेरे , षडयंत्रों का हुए शिकार।

विकल ह्रदय जननी हूँ मैं , पुत्रों मेरी सुनो पुकार।

विकल्प एक ही है, प्रतिशोध, सत्य यही है करो स्वीकार।

कायरता के कृत्य घिघौने , छद्मयुद्ध की माया को।

चिथड़े-चिथड़े  उड़ते  देखा, मैंने पुत्रों की काया को।

इस छद्मयुद्ध के जख्मों में , टीस  भयानक उठती है।

फ़फ़क-फ़फ़क  कर रोते-रोते  ही, रीस भयानक उठती है।

समय नहीं है अब केवल वक्तव्यों  और बयानों का।

घड़ियाली आँसू टपकाने, बहकाने और बहानों  का।

पुलवामा की  मर्माहत पीड़ा, स्रोत शक्ति का  बन जाए।

शत्रुजनित जो मिली वेदना, वो शत्रु-मृत्यु  बन जाए।

वीर-प्रसूता हूँ मैं फिर भी ,कहाँ भाग्य से भूल हुई।

कौन शत्रु को बचा रहा, क्यों किस्मत प्रतिकूल हुई।

ताले बंदूकों के ,वीर जवानों की ,गए नहीं क्यों खोले।

आस्तीन में मेरी, किसकी शह पर, पलते रहे सँपोले।

जिस मिट्टी का तिलक लगाते, मैं वो भारत की धरती हूँ।

मेरे बच्चों मैं आज स्वयं,  आह्वान तुम्हारा करती हूँ।

गीता में भगवान् कृष्ण के उपदेशों का ध्यान करो।

पृथ्वी, अग्नि, आकाश मिसाइल का शीघ्र अब संधान करो।

हिंदुस्तान' इन उद्द्वेग-क्षणों को व्यर्थ गँवाना उचित नहीं।

वीरों के उत्सर्ग-पर्व पर , अश्रु बहाना उचित नहीं।

सन सैंतालिस में मिली स्वतंत्रता समझो अभी अधूरी है।

इस निर्मम सिद्धांत-विहीन , आतंकी का पतन जरूरी है।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on February 21, 2019 at 5:06pm

आदरणीय गंगाधर शर्मा जी देशप्रेम से ओतप्रोत सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई

Comment by नाथ सोनांचली on February 19, 2019 at 6:37pm

आद0गंगाधर शर्मा हिंदुस्तान जी सादर अभिवादन। ओज का प्रवाह करती बढिया रचना पर बधाई समर्पित है। इस रचना में आपने अलग अलग शिल्प आधारित छंद का प्रयोग किया है जैसे पहला बंद आल्हा छंद

Comment by Samar kabeer on February 19, 2019 at 2:28pm

जनाब गंगाधर शर्मा जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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