For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल ( इश्क़ उम्मीद है)

2122, 1122, 1122, 22/112

सुर्ख़रू शोख़ बहारों सा चहक जाओगे
इश्क़ के बाग़ में आओ तो गमक जाओगे

गर इरादे हुए हैं बर्फ़ से ख़ामोश तो क्या
गर्मी-ए-इश्क़ में आ जाओ दहक जाओगे

इश्क़ की ताब का अंदाज़ा भला है तुमको
इसकी ज़द में ही फ़क़त आओ लहक जाओगे

रौनक-ए-इश्क़ की ताक़त को न ललकारो तुम
ख़ूब ज़ाहिद हो मगर तुम भी बहक जाओगे

इश्क़ ख़ुश्बू है इसे बांधने की ज़िद न करो
इसमें घुल जाओ तो दुनिया में महक जाओगे

इश्क़ के रंग व ख़ुश्बू से मिलोगे जब तुम
नर्म इक फूल की डाली सा लचक जाओगे

इश्क़ उमीद है जलवे में सदा रहता है
दिल में इस लौ को जगा लो तो चमक जाओगे

-- क़मर जौनपुरी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 558

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 12, 2019 at 3:06pm

आ कमर भाई साहब नमन
अच्छी गजल के लिए आप को बधाई

Comment by Balram Dhakar on February 11, 2019 at 11:00pm

जनाब क़मर साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल फ़रमाएं।

सादर।

Comment by क़मर जौनपुरी on January 31, 2019 at 4:24pm

बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम समर कबीर साहब और मोहतरम रवि शुक्ला साहब खूबसूरत इस्लाह और राय के लिए।

Comment by Samar kabeer on January 26, 2019 at 10:44pm

मैं जनाब रवि जी से सहमत हूँ ।

बाक़ी सब ठीक है,न होता तो पहले ही लिख देता ।

Comment by Ravi Shukla on January 26, 2019 at 10:13pm

आदरणीय कमर जौनपुरी साहब बहुत अच्छी गजल आपने कहीं दिली मुबारकबाद पेश करता हूं जब तक समर साहब पुनः इस ग़ज़ल पर हाजिर होते हैं मैं अपना नजरिया पेश करने की इजाजत चाहता हूं ग़ज़ल में मात्रा गिराना स्वीकार्य है यह सुविधा है जहां तक हो सके मिसरो में मात्रा न गिराई जाए तो खूबसूरती बढ़ जाती है लेकिन मात्रा गिरा कर भी गजल कही जाती है और अभी भी कहीं जा रही है यह आप पर निर्भर है कि आप इसे कैसे लेते हैं सादर

Comment by क़मर जौनपुरी on January 24, 2019 at 11:34pm

मोहतरम जनाब समर कबीर साहब आदाब।

बहुत बहुत शुक्रिया इस्लाह के लिए। चहक की जगह महक कर लूं तो ठीक हो जाएगा?

इस ग़ज़ल को बह्र में लाने के लिए बहुत मात्राओं को गिराना पड़ा, क्या यह क्षम्य हैं? इस पर भी रहनुमाई करने की मेहरबानी करें।

सुर्खरू के इस्तेमाल में भी काफी असमंजस में था, क्या यह सही हो पाया है?

बहुत बहुत शुक्रिया आपका एक बार फिर इतनी उम्दा इस्लाह के लिए।

Comment by Samar kabeer on January 24, 2019 at 11:21pm

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है ,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के ऊला मिसरे में 'बहारें' महकती हैं,चहकती नहीं,ग़ौर करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
7 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service