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वन्दना (दुर्मिल सवैया)

कर जोड़ प्रभो विनती अपनी, तुम ध्यान रखो हम दीनन का।

हम बालक बृंद अबोध अभी, कुछ ज्ञान नहीं जड़ चेतन का

चहुओर निशा तम की दिखती, मुख ह्रास हुआ सच वाचन का

अब नाथ बसों हिय में सबके, प्रभु लाभ मिले तव दर्शन का ।।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by नाथ सोनांचली on January 7, 2019 at 3:42pm

आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम। किसी भी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए पुरस्कार से कम नहीं। आभार आपका

Comment by Samar kabeer on January 7, 2019 at 12:00pm

जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,अच्छी वंदना है दुर्मिल सवैया छन्द में,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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