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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६५

२१२२ २१२२ २१२२
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आ गया है जेठ, गर्मी का महीना
अब समंदर को भी आयेगा पसीना //१

उम्र भी अब तो सताने लग गई है
डूबता ही जा रहा है ये सफ़ीना //२

सोचता हूँ जिंदगी भी क्या करम है
उफ़ ! ये मरना और यूँ मर मर के जीना //३

ज़िंदगानी के तराने गा रहे सब
हैं दिवाने सैकड़ों और इक हसीना //४

सुन रहे हैं ये ग़ज़ल जो आप हमसे 
हमने पत्थर से निकाला है नगीना //५

घर से तेरे लौट कर हमको लगा यूँ
आ गए हम होके मक्का और मदीना //६

आदमी ही आदमी को डंस रहा है
आदमी भी हो गया कितना कमीना //७

अब नहीं निस्बत न कोई आरज़ू है
आ गया मुझको भी जीने का करीना //८

हो करम फ़रमाँ तू ग़ैरों के अलम में
तू कभी अपने अलम में हो दुखी ना //९

अब नहीं लिखता ग़ज़ल, सब पूछते हैं
तेरी भी वो एक शहज़ादी तो थी ना? // १०

लौट के जाऊं अदम जो अब मैं चलके 

राज़ निकलूँ घर से बाहर मैं कभी ना //११

~राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

(इस्लाह के बाद)

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Comment by राज़ नवादवी on November 3, 2018 at 12:50pm

आदरणीय तेज वीर सिंह साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर 

Comment by राज़ नवादवी on November 3, 2018 at 12:50pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर 

Comment by राज़ नवादवी on November 3, 2018 at 12:49pm

आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 3, 2018 at 12:16pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राज़ नवादवी जी। बेहतरीन गज़ल।

सोचता हूँ जिंदगी भी क्या करम है 
उफ़ ! ये मरना और यूँ मर मर के जीना //३ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 3, 2018 at 11:39am

आ. भाई राज नवादवी जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई । 

आ गया है जेठ, गर्मी का महीना
अब समंदर को भी आयेगा पसीना

खूबसूरत भावचित्र खींचा है ..

Comment by बसंत कुमार शर्मा on November 3, 2018 at 8:51am

आदरणीय राज जी को सादर नमस्कार , बहुत सुंदर गजल हुई , बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

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