For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज फिर बापू को हमने याद दिल से कर लिया ।

और सारे साल फिर इनसे किनारा कर लिया ।।

 

फूल चरणों में चढ़ाकर सोचते सब ठीक है ।

रूप बगुले का बशर ने फिर तिबारा कर लिया।।

 

परचम-ए-खादी तिरंगे  में लिपटकर कह रहा ।

मेरे ही मुंसिफ़ ने मुझसे  किनारा कर लिया ।।

 

देखकर रंग-ए-फिज़ा  हैरां मैं  हर दिन हो रहा ।

कैसे खोटे ने खरे को भी नकारा कर लिया।।

 

सुन के भी जब अनसुनी करने लगे अपने ही लोग ।

हो व्यथित बापू ने जग से ही किनारा कर लिया ।।

ज़्यादा की चाहत कभी की ही नहीं उसने' प्रदीप' 

उसने अपना तो फ़कीरी में गुज़ारा कर लिया 

-प्रदीप भट्ट-

मौलिक एवं अप्रकाशित -

Views: 553

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on October 6, 2018 at 5:41pm

'हो व्यथित बापू ने जग से ही किनारा कर लिया' ये पंक्ति ठीक है,ग़लती से कोट हो गई ।

Comment by Samar kabeer on October 6, 2018 at 5:39pm

'मेरे ही मुंसिफ़ ने मुझसे  किनारा कर लिया'

ये पंक्ति अभी बह्र में नहीं है,इसे यूँ कर सकते हैं:-

'मेरे ही मुन्सिफ़ ने मुझसे क्यों किनारा कर लिया'

'कैसे नक्कालों ने अपने बस में ख़ालिस कर लिया'

इस पंक्ति में क़ाफ़िया नदारद है?

'हो व्यथित बापू ने जग से ही किनारा कर लिया'

इस पंक्ति में 'ही' शब्द अधिक होने से बह्र से ख़ारिज है 'ही' शब्द हटा दें ।

बाक़ी ठीक है ।

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on October 6, 2018 at 12:41pm

जनाब समर साहिब 

आपका आदेश सिर माथे 

लीजिए दुरुस्त कर दिया।

Comment by Samar kabeer on October 3, 2018 at 2:58pm

जनाब प्रदीप भट्ट साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।

मतला और उसके बाद के शैर में रदीफ़ 'लिया' है और बाक़ी तीन अशआर में रदीफ़ "दिया" हो गई है,ग़ौर करें ।

'परचम-ए-खादी तिरंगे  में लिपटकर कह रहा '

तिरंगा भी परचम है,"परचम-ए खादी" से क्या कहना चाहते हैं?स्पष्ट नहीं ।

देखकर रंग-ए-फिज़ा  मैं हैरान हर दिन हो रहा ।

जो असल थे उनको नक्कालों ने नकारा कर दिया

ये शैर बह्र में नहीं है,क़ाफ़िया भी 'नकारा' ग़लत है,सहीह शब्द है "नाकारा" ।

सुन के भी अनसुनी करने लगे अपने ही लोग ।

हो व्यथित बापू ने जग से ही किनारा कर लिया

ये शैर भी बह्र से ख़ारिज है, देखियेगा ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 2, 2018 at 7:47pm

कालजयी राष्ट्रहित, सामाजिक सरोकार के संदेश देने वाले महान व्यक्तित्व राष्ट्रपिता बापू जी का पुण्य स्मरण कराती, उनकी रूह का दर्द बयां करती बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय प्रदीप देवीशरण भट्ट साहिब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
18 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
19 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।छंदों पर उपस्थिति उत्तसाहवर्धन और सुझाव के लिए आभार। प्रयास रहेगा कि…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह वाह ..  दूसरा प्रयास है ये, बढिया अभ्यास है ये, बिम्ब और साधना का सुन्दर बहाव…"
20 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रभाजी हार्दिक धन्यवाद प्रशंसा के लिए | "
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service