For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खरा सोना - लघुकथा –

खरा सोना - लघुकथा –

आज मेरा अखबार नहीं आया था तो सुबह नाश्ते के बाद अपने मित्र जोगिंदर सिंह के घर अखबार पढ़ने की गरज़ से टहलते टहलते पहुँच गया।

जैसे ही लोहे का गेट खोल कर अंदर घुसा तो देखा कि जोगिंदर का बेटा धूप में खड़ा किताब पढ़ रहा था।

मैं उससे इसकी वज़ह पूछने ही वाला था कि जोगिंदर ने आवाज़ लगा दी,"आजा भाई मलिक, क्या सही वक्त पर आया है। चाय आ रही है"।

मैंने कुर्सी जोगिंदर के पास खींचते हुए पूछा,"भाई, यह तेरा छोरा इतनी तेज़ धूप में क्यों पढ़ रहा है। इससे क्या दिमाग तेज़ चलता है"?

"अरे नहीं यार उसे सज़ा मिली है"?

"ओह यार फूल से बच्चे को इतनी सख्त सज़ा किस वास्ते"?

"मुझे उसकी शिकायत मिली कि वह कॉलोनी के छोरों के साथ कंचे खेल रहा था"?

"कमाल है यार, बच्चा ही तो है। इस उम्र में नहीं खेलेगा तो कब खेलेगा"?

"मेरे दोस्त, खेलने की मना नहीं है। मैं तो खुद उसे खेलने के लिये बढ़ावा देता हूँ परंतु अनुपयोगी खेल कूद का पक्षधर नहीं हूँ"।

"यार, तेरे छोरे का तो  समाज में बड़ा नाम है। घर घर में इसी की चर्चा है| पढ़ाई में भी अब्बल है। खेलों में भी खूब इनाम लाता है। तेरा छोरा तो सोना है खरा सोना"।

"मलिक साब, सोने को भी आभूषण में ढालने के लिये ठोंकना ,पीटना और तपाना पड़ता है"।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 818

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on July 17, 2018 at 12:45pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।

Comment by Samar kabeer on July 17, 2018 at 12:01pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 17, 2018 at 11:29am

हार्दिक आभार आदरणीय नीलम उपाध्याय जी।मेरे विचार से कंचे खेलने की अनुमति तो कोई भी पिता नहीं देगा।

Comment by Neelam Upadhyaya on July 17, 2018 at 11:06am

अनुशासनप्रिय होना तो अच्छी बात है लेकिन इसके पीछे बच्चों का बचपन छिन जाता है।  यह बात तब समझ आती है जब बच्चों का बचपन बीत जाता है।  अच्छी लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी। 

Comment by TEJ VEER SINGH on July 17, 2018 at 9:57am

हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।कुछ लोग अति अनुशासन प्रिय होते हैं। एक कारण यह भी हो सकता है।

Comment by Mohammed Arif on July 17, 2018 at 7:55am

आदरणीय तेजवीर जी आदाब,

                         आजकल हमारे समाज में संतान को लेकर काफी अपेक्षाएँ बढ़ गई है । सारी उम्मीदें और सपनें हम संतान में देखते हैं । इस चक्कर में हम बच्चों को खेलने-कूदने भी नहीं देते हैं । उनके खेल-कूद छीन लेते हैं । बच्चों के हर सुख-चैन छीनकर उन्हें सुविधाएँ प्रदान कर रहे हैं । शायद आपका मित्र भी अति महत्वाकांक्षी है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
12 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
12 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service