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ग़ज़ल...पिछले कुछ दिनों से-बृजेश कुमार 'ब्रज'

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन

हूँ बहुत हैरान पिछले कुछ दिनों से
ज़ीस्त है हलकान पिछले कुछ दिनों से

चाँद भी है आजकल कुछ खोया खोया
रातें हैं वीरान पिछले कुछ दिनों से

आदमी हूँ आदमी के काम आऊँ
है यही अरमान पिछले कुछ दिनों से

कौड़ियों के भाव बिकती हैं अनाएं
मर गया ईमान पिछले कुछ दिनों से

जोश में है भीड़ 'ब्रज' आक्रोश भी है
बस नहीं है जान पिछले कुछ दिनों से
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment

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Comment by gumnaam pithoragarhi on June 13, 2018 at 12:28pm
वाह अच्छी ग़ज़ल हुई भाई जी....बधाई
Comment by TEJ VEER SINGH on June 13, 2018 at 12:11pm

हार्दिक बधाई आदरणीय ब्रजेश कुमार जी। बेहतरीन गज़ल।

कौड़ियों के भाव बिकती हैं अनाएं
मर गया ईमान पिछले कुछ दिनों से

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 13, 2018 at 6:54am

बहुत खूब..

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