(फ़ा इलातुन--मफाइलुन--फ़ेलुन)
हुस्न और इश्क़ की कहानी है।
एक है आग एक पानी है।
कह रही है वफ़ा जिसे दुनिया
उसको पाने की मैं ने ठानी है।
बन के आए हैं वो तमाशाई
आग घर की किसे बुझानी है।
सोच कर कीजियेगा तर्के वफ़ा
अपनी यारी बहुत पुरानी है।
घिर गए मुश्किलों में और भी हम
आप की बात जब से मानी है।
वो अदावत से काम लेते हैं
हम को जिन से वफ़ा निभानी है।
प्यार को क्या मिटाएगी दुनिया
ख़ुद ही तस्दीक़ ये तो फ़ानी है।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
जनाब अजय कुमार साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
वाह भई वाह !
शानदार गजल. मजा आ गया....
मुहतरम जनाब तेजवीर साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।बेहतरीन गज़ल।
वो अदावत से काम लेते हैं
हम को जिन से वफ़ा निभानी है।
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब ,ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय तस्दीक़ अहमद साहब आदाब,
एक और लाजवाब ग़ज़ल का तोहफा । वल्लाह कमाल है । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय दे चुके हैं , संज्ञान लें ।
मुहतरम जनाब विजय साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आपकी गज़ल अच्छी लगी। मुबारकबाद, जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब।
आ.जनाब नीलेश नूर साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
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