मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुम
सोई हुई ख़्वाहिश को जगाना ही नहीं था
ख़्वाबों में मेरे आपको आना ही नहीं था
बाग़ी है अगर तुझ से तो अब कैसी शिकायत
औलाद का हक़ तुझको दबाना ही नहीं था
वो होके पशेमान यही बोल रहे हैं
मासूम पे इल्ज़ाम लगाना ही नहीं था
सब,झूट यही कह के यहाँ बोल रहे थे
सच बोलने वालों का ज़माना ही नहीं था
बहरों की ये बस्ती है "समर" जान गये थे
फिर तुमको यहाँ शोर मचाना ही नहीं था
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आ0 कबीर सर सादर प्रणाम अब मुझे पता चला यह ग़ज़ल भेजकर आप हम लोगों की योग्यता को परखना चाहते थे । बहुत अच्छा लगा सर । जो भी प्राप्त हुआ है हमें वह आप जैसे गुरुओं की कृपा से ही सम्भव हो सका । नमन ।
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई इसके लिए धन्यवाद ।
4थे शैर के ऊला में 'झूट' शब्द सही है,फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि हिन्दी में इसे "झूठ" कहते और लिखते हैं,और उर्दू में "झूट"लिखा और बोला जाता है ।
अब रही मतले की बात,तो इसके लिये आपको इस ग़ज़ल की सभी टिप्पणियों को ध्यान पूर्वक पढ़ना होगा,आपका जवाब उसी में है, वैसे आपका सुझाव देना मुझे अच्छा लगा ।
4थे शैर के सानी मिसरे में 'ज़माना शब्द पुल्लिंग ही है, टंकण त्रुटि की वजह से 'थी' हो गया,अगर पूरी ग़ज़ल आप ध्यान से पढ़ते तो ये प्रश्न नहीं करते,क्योंकि 'था" शब्द तो रदीफ़ का हिस्सा है,यहाँ सिर्फ़ टंकण त्रुटि लिख देना काफ़ी होता ।
//सब,झूट यही कह के यहाँ बोल रहे थे
सच बोलने वालों का ज़माना ही नहीं थी
बहरों की ये बस्ती है "समर" जान गये थे
फिर तुमको यहाँ शोर मचाना ही नहीं था//
सारी गज़ल ही दिलकश है, पर इन एहसासों पर खास दाद । बधाई, भाई समर जी।
आदरणीय समर साहब,
मुझे पता था कि आपने ये गलती जान बूझकर ही की है. मेरी टिपण्णी का मकसद भी यही था कि मंच की रचना और आलोचना के बीच ईमानदार, संयत और गरिमापूर्ण संवाद की परंपरा को सामने रखा जाय.
सादर
गलत हो गया सानी ऐसे होगा
अपनी अना को आज झुकाना ही नहीं था ।
जग और हट हम काफिया नहीं । इसको यूँ किया जा सकता है सोई हुई ख्वाहिश पे निशाना ही नहीं था ।
मुझको अभी अना को झुकाना ही नहीं था ।।
वाह बहुत खूब सर लाजबाब ग़ज़ल हुई है । चौथे शेर में दो जगह आप से ज्ञान चाहता हूँ । सही शब्द झूठ है या झूट दूसरा यह कि जमाना पुलिंग है उसके साथ थी नहीं जम रहा । यह सम्भवतः टाइपिंग त्रुटि है ।
आप भी तो इसी मंच(परिवार)के हैं भाई,वैसे आप सही फ़रमाते हैं ।
आ. समर सर,
आप जिस बात का क्रेडिट मुझे रहे हैं उस क्रेडिट का असली हक़दार यही मंच है जहाँ से आपके और अन्य सभी वरिष्ठ मार्गदर्शकों के सानिध्य में थोडा बहुत सीख पाया हूँ...
आभार
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