For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तन-बदन सब लाल पीला और काला हो गया


बह्र:-2122-2122-2122-212

तन-बदन सब लाल पीला और काला हो गया 

"ये ख़बर ज्यूँ ही मिली कि तू पराया हो गया

धुंध छा जाती न आँखें रोक पाती अश्क अब।
तेरे बिन जीवन यूँ मेरा टूटी माला हो गया।।

कैसे खुद को मैं बचाता प्यार का है रंग चटख।
प्रेम के रंग से लिपट जब ईश ग्वाला हो गया।।

कुछ बताया अश्क ने यूँ अपनी इस तक़दीर पर।
जब से प्याली में वो टपका तब से हाला हो गया।।

ठोकरें बदली मुक़द्दर, गन्दगी मन जब हटी।
स्नेह की बरखा हुई तब मैं नहाया हो गया।।

वक्त की ज़ुल्मी हवाओं से उलझ कर आजकल।
सच कहूं अपना मुक़द्दर खोया पाया हो गया ।।

रूठ कर जाना, न आना, भूल जाना बे वजह।
था यही हिस्सा हमारा और आला हो गया।।
आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित

Views: 851

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on March 20, 2018 at 7:27pm

आद0 आमोद जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का बेहतरीन प्रयास। सच बताऊं तो आप बहुत बेहतरीन मंच पर आ गए हैं। यहां ग़ज़ल में सीखने को बहुत कुछ है, बस लग्न चाहिए। आली जनाब समर साहब ने काफी बेहतरीन इस्लाह दी है, गौर कीजियेगा। बहुत बहुत बधाई आपको इस प्रयास के लिए।

Comment by Samar kabeer on March 16, 2018 at 6:28pm

पहले तो इसके लिए क्षमा करें कि हमें ओबीओ पर चेट करना नहीं आता ।

ऊला ठीक है लेकिन सानी यूँ होना चाहिए:-

"ये ख़बर ज्यूँ ही मिली कि तू पराया हो गया'

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 16, 2018 at 5:54pm
तन-बदन सब लाल पीला और काला हो गया ।
ये खबर यूँ मिली के तू पराया हो गया ।।
आ समर दादा अगर ऐसा लिख दूँ ..
Comment by Samar kabeer on March 16, 2018 at 5:43pm

ऊला यूँ भी हो सकता है:-

'मेरा जीवन नीला,पीला लाल, काला हो गया'

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 16, 2018 at 4:46pm
आ समर दादा प्रणाम
दादा मतले की पहली पन्ति में मैंने ..नीला ..स्याह होना , लाल पिला - नाराज होना ,और काला --सब ख़त्म होने के लिए सोच कर लिखा था ..
जीस्त से अगर परेशानी है तो मैं कुछ और विचार करता हूँ ...शुक्रिया दादा नमन
Comment by Samar kabeer on March 16, 2018 at 2:59pm

जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा हुआ है, और आपकी ग़ज़लें भी निखरती जा रही हैं,ये देख कर प्रसन्नता हुई,इस अच्छे प्रयास के लिये बधाई स्वीकार करें ।

ओबीओ से बहतर सीखने सिखाने का दूसरा कोई मंच नहीं,आप विचलित न हों,यहाँ सब एक दूसरे का मार्गदर्शन ही करते हैं ।

'ज़ीस्त नीला,लाल पीला,और काला हो गया

ये ख़बर जब यूँ मिली के तू पराया हो गया'

मतले के ऊला मिसरे में "ज़ीस्त" शब्द स्त्रीलिंग है, जैसा कि हर्ष जी ने बताया,सही है,इस शब्द को 'ज़िस्त' नहीं कर सकते,जो आपका ख़याल है, इसी शब्द के कारण मतले के दोनों मिसरों में जो ताल-मेल होता है नहीं हो रहा है,उस शब्द के साथ अगर 'रंग' शब्द लगा दें,और सानी मिसरे में मामूली सा रद्दो बदल कर दें तो मतला बहतर हो जायेगा,मिसाल के तौर पर मतला यूँ कहें तो :-

'ज़ीस्त का रंग लाल था,अब देख काला हो गया

ये ख़बर ज्यूँ ही मिली कि तू पराया हो गया'

उम्मीद है आप समझ गये होंगे?

और कोई संशय हो तो निसंकोच पूछ लें ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 16, 2018 at 8:45am
आ नीलेश साहब नमन ...
अन्तर्सम्बन्ध ...का आसाय क्या रब्त से था .
अगर हां ...तो जो है तो सामने है आप सब के ।
गजल की भाषा (लहजा)अभी मैं सीख नही पा रहा ..प्रयाश रत हूँ ।
आप के मार्गदर्शन और प्रत्साहन के लिए आभार ..
Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 16, 2018 at 8:40am
आ हर्ष दादा प्रणाम ..
जीस्त को आप ज़िस्म कर लीजिए ...जिस्म सायद पुर्लिंग शब्द है । मार्गदर्शन और प्रोत्साहन के लिए नमन ..
Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 16, 2018 at 8:37am
अब तो obo ब्लॉग भी भ्रमित करने लगा है । मतले में रब्त नहीं है समझ नही आया रब्त किस तरह का होना चाहिए ...आ समर दादा आप ही मार्गदर्शन दीजिये ...ज्यादा मार्गदर्शक होने से मैं भ्रमित हो रहा हूँ ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 16, 2018 at 8:25am

आ. आमोद जी 
हर्ष जी की सलाह उचित है फिर मतले के दोनों मिसरों में अंतर्संबंध भी नहीं है 
.
कैसे खुद को मैं बचाता प्यार का है रंग चटख।
प्रेम के रंग से लिपट जब ईश ग्वाला हो गया।।.. इस शेर के लिए बधाई 
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान'मैं सुमन हूँ।' पहले ने बतया। '.........?''मैं करीम।' दूसरे का…"
16 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
20 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
21 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service