हृदय-सम्बन्ध - ५
संकोच, घबराहट
ढुलता अश्रुजल
हर प्रवाह के नीचे
एक और प्रवाह
पता नहीं भूचाल था वह, या
था कोई भीषण प्रकम्पक तूफ़ान
दुर्दम मझधार, छूट गई पतवार
क्या इतना दुर्बल था प्यार ?
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हृदय-सम्बन्ध - ६
विचित्र अनुभव ...
किसी काल्पनिक भय का
विराटकाय रूप
मौत की आखिरी मात-सा
विषमय अभिषाप-सा
मानो प्रलय से पहले रच रहा षडयत्रं
तमोमय यमराज खड़ा द्वार पर
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हृदय-सम्बन्ध - ७
आँसूओं से डबडबाई आँखें
जानता हूँ बहुत कठिन थे वह पल
घुटते सुबकते ओठों पर तुम्हारे
बुलबुलों की तरह काँपते-फूटते
विदा में तुम्हारे वह अंतिम शब्द ...
"मेरे प्यार
तुम चले जाओ"
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हृदय-सम्बन्ध - ८
व्यथा में घुली नामहीन
दर्द भरी गहरी पुकार
पता नहीं कहाँ रह गई है
जीवन की व्यक्तित्वहीन नाव
थम गई है धड़कन कब से
बुझ चुके हैं अब सब तारे भी
सुन, मेरी बेचैन ज़िन्दगी
सो जा... नींद आ रही होगी
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--- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्र्सिहं जी
इस मान और सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीया अनामिका जी।
सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय अशोक जी
आदरणीय विजय निकोर साहब सादर, ह्रदय सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न परिस्थितियों को लेकर रची सभी क्षणिकाएँ दमदार हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर.
आदरणीय विजय निकोर जी , बहुत ही सुंदर ,दिल को छूती क्षणिकाओं का सृजन किया है सादर , हार्दिक बधाई स्वीकारें l
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय बृजेश जी
वाकई इसे कहते हैं गागर में सागर..बेहतरीन आदरणीय विजय जी.
//विछोह , एकाकीपन, किसी दुर्दम मझधार में पतवार का हाथ से छूट जाना//
सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय विजय शंकर जी।
//कुछ रचनायें और क्षणिकायें ऐसी होती हैं जिन्हें जितनी बार ध्यान से पढ़ें, उतने ही गहरे भाव समझ में आने लगते हैं।//
इनको इतनी गहराई से पढ़ने के लिए और मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब। टंकण त्रुटियाँ सुधार रहा हूँ, आपका हृदयतल से आभार, भाई।
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