For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आम की गुठली (लघुकथा)

"चलो चलो!जल्दी तैयार हो जाओ सब लोग यहाँ पंक्ति में खड़े हो जाओ।" सफ़ेद कुर्ते वाला चिल्ला रहा था। गाँव के चौपाल पर महिलाओं को इक्कठा किया जा रहा था। महिलाएं सजी -धजी पंक्ति में खड़ी होती जा रही थी। चौपाल पर कुछ नव-युवक और कुछ बुज़ुर्ग वर्ग बैठे हुए थे। बुज़ुर्गों के लिए तो जैसे यह आम बात थी। चौपाल पर भारतीय प्रजातंत्र की बातें हो रही थी। नव-युवक बुज़ुर्गों की बातें ध्यान से सुन रहे थे। किसी ने पूछा,"ये महिलाएं कहाँ जा रही हैं? इनको यह कुर्ते वाला क्यों लेने आया है? यह कौन है?" तरह- तरह की बातें हो रही थीं। किसीने उत्तर दिया,"करीब के शहर में रैली का आयोजन है। सो आस-पास के गाँव से महिलाओ को इक्कठे किया जा रहा है।और यह कुर्ते वाला उसी नेता के लिए काम करता हैं।" किसीने पूछा," किस बात के लिए रैली होने वाली है? मेरे बापू बोले अम्मा को जाने दो।" करीब बैठे हुए एक बुज़ुर्ग ने उसकी तरफ देखते हुए कहा,"क्यों रे लल्ला! तेरे घर से कौन जा रहा है?" "मेरी माँ और पत्नी......।" "तो क्या सच में तुझे पता नहीं ....?" "क्या पता नही! दादू ..." "ये महिलाएं उस सफ़ेद कुर्ते वाले के साथ आज शहर जाएँगी।इनके हाँथो में कुछ लाल-नीले अक्षरो से लिखे हुए गत्ते पकड़ा दिए जायेंगे.....।" "अरे!... पर क्यों..... उससे क्या होगा?"उस नव-युवक ने उत्सुकता-वश पूछा। "हाहा हाहा! आज के प्रजातन्त्र में कब कुछ हुआ है........हाहा हाहा! कल के अख़बार में यह खबर आ जायेगी...फलां-फलां के लिए महिलाओं की रैली नीक्ली, जो अमका-तमका नेता के नेतृत्व में संपन्न हुई। और इसकी सफलता इसमें शामिल भीड़ को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं।" "मैं कुछ समझा नहीं....."उस नव-युवक ने कहा। "बेटा! ज्यादा न सोचो, शायद तुम पहली बार ऐसा देख रहे हो।" "जाओ बेटा घर जाओ, देखो घर जाकर आज तुम्हारी माँ ने पकवान बनाया होगा।" "हाँ! बनाया तो है। पर पकवान से रैली का क्या मतलब?" "बेटे!ये प्रजातंत्र हैं, यहाँ आये दिन रैलियां निकलती रहेंगी, और भीड़ बढ़ाने के लिए इसी तरह से पैसे देकर लोगों को ले जाया जायेगा।" कुछ पल रुक कर उन्होंने उस नव-युवक के चहरे पर के उतार-चढ़ाव देखने के बाद कहा,"तुम आम खाओ गुठलियों के बारे में न सोचो।" मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 663

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 13, 2018 at 6:44pm

सादर धन्यवाद आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब , आदरणीय सतविंद्र भैया, आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 13, 2018 at 6:43pm

सादर धन्यवाद आदरणीय विजय सर |

Comment by vijay nikore on February 13, 2018 at 6:38pm

आज आपकी प्रभावशाली लघु कथा पुन: पढ़ी.... बधाई

Comment by vijay nikore on January 25, 2018 at 1:19pm

बहुत ही प्रभावशाली लघु कथा । हार्दिक बधाई, आदरणीया कल्पना जी।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 25, 2018 at 8:26am

आम की गुठली (लघुकथा)

"चलो चलो!जल्दी तैयार हो जाओ सब लोग यहाँ पंक्ति में खड़े हो जाओ।" सफ़ेद कुर्ते वाला चिल्ला रहा था।
गाँव के चौपाल पर महिलाओं को इक्कठा किया जा रहा था। महिलाएं सजी -धजी पंक्ति में खड़ी होती जा रही थीं।
चौपाल पर कुछ नव-युवक और कुछ बुज़ुर्ग बैठे हुए थें। बुज़ुर्गों के लिए तो जैसे यह आम बात थी। चौपाल पर भारतीय प्रजातन्त्र की बातें हो रही थी ,नव-युवक बुज़ुर्गों की बातों को ध्यान से सुन रहे थें।
किसी ने पूछा,"ये महिलाएं कहाँ जा रही हैं? इनको यह कुर्ते वाला क्यों लेने आया है? यह कौन है?"
तरह- तरह की बातें हो रही थीं।
किसीने उत्तर दिया," शहर में रैली का आयोजन है। सो आस-पास के गाँव से महिलाओ को इक्कठा किया जा रहा हैं।और यह कुर्ते वाला इन सबको शहर ले जायेगा और रैली में पहुँचायेगा।
किसीने पूछा," किस बात के लिए रैली होने वाली है? मेरे बापू ने कहा,"अम्मा को जाने दो।"
करीब बैठे हुए एक बुज़ुर्ग ने उसकी तरफ देखते हुए कहा,"क्यों रे लल्ला! तेरे घर से कौन जा रहा है?"
"मेरी माँ और पत्नी......।"
"तो क्या सच में तुझे पता नहीं ....?"
"मुझे क्या नहीं पता?दादू ..."
"ये महिलाएं उस सफ़ेद कुर्ते वाले के साथ आज शहर जाएँगी।इनके हाँथो में कुछ लाल-नीले अक्षरो से लिखे हुए गत्ते पकड़ा दिए जायेंगे.....।"
"अरे!... पर क्यों..... ऐसा करने से क्या होगा?"उस नव-युवक ने उत्सुकता-वश पूछा।
"हाहा हाहा! आज के प्रजातन्त्र में कब कुछ होता है
......हाहा हाहा! कल के अख़बार में यह खबर आ जायेगी...फलां-फलां के लिए महिलाओं की रैली निकाली गई , जो अमका-तमका नेता के नेतृत्व में संपन्न हुई। और इसकी सफलता इसमें शामिल भीड़ को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं।"
"मैं कुछ समझा नहीं....."उस नव-युवक ने कहा।
"बेटा! ज्यादा न सोचो, शायद तुम पहली बार ऐसा देख रहे हो।"
"जाओ बेटा घर जाओ, देखो घर जाकर, आज तुम्हारी माँ ने पकवान बनाया होगा।"
"हाँ! बनाया तो है। पर पकवान से रैली का क्या मतलब?"
"बेटे!यह प्रजातन्त्र हैं, यहाँ आये दिन रैलियां निकलती रहेंगी, और भीड़ बढ़ाने के लिए इसी तरह से पैसे देकर लोगों को ले जाया जायेगा।" कुछ पल रुक कर उन्होंने उस नव-युवक के चेहरे पर के उतार-चढ़ाव देखने के बाद कहा,"तुम आम खाओ गुठलियों के बारे में न सोचो।"

Comment by Mohammed Arif on January 25, 2018 at 8:07am

आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब,

                                   हमारे भारतीय प्रजातंत्र का स्वरूप ही भीड़तंत्र रह गया है । भाड़ैती भीड़ इकट्ठा की जाती है । जनता भी आज बड़ी सयानी हो गई है । वह बग़ैर पैसे के कहीं जाती नहीं है और ताली बजाती नहीं है । यह सब प्रजातंत्र के दगातार गिरते स्तर को दर्शाता है । अच्छा कटाक्ष किया आपने । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियों को दूर किया जा सकता है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 24, 2018 at 9:09pm

हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना दीदी,इस प्रस्तुति के लिए। कुछ शब्द गलत  टाइप हो गए लगते हैं। सादर

Comment by surender insan on January 24, 2018 at 1:51pm

सच्चाई जाहिर करती बहुत सार्थक रचना के लिए बधाई हो जी ।सादर नमन जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है। हार्दिक बधाई। भाई अमीरुद्दीन जी की सलाह पर गौर करें।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, स्नेह के लिए आभार।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
12 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
13 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
13 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
13 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service