बह्र-फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
अँधेरे से निकलें उजाले में आयें।
नये साल में कुछ नया कर दिखायें।
गमों का लबादा जो ओढ़े हुये हैं,
उसे फेंक कर हम हँसें मुस्करायें।
जो चारो दिशाओं में खुशबू बिखेरे,
बगीचे में ऐसे ही पौधे लगायें।
न झगडें कभी धर्म के नाम पर हम,
किसी का कभी भी लहू ना बहायें।
न नंगा न भूखा न बेघर हो कोई,
चलो हम सभी ऐसी दुनिया बसायें।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदर्णीय लक्ष्मण धामी जी ग़ज़ल पर टिप्पणी करने एवं हौसला बढा़ने के लिये सादर आभार।
आदर्णीय ब्रजेश कुमार ब्रज जी सादर धन्यवाद
आदरणीय बृजेश कुमार जी आपको ग़ज़ल पसन्द आई इसके लिये हार्दिक धन्यवाद
आ. भाई राम अवध जी, सुंदर प्रेरणाप्रद गजल के लिए हार्दिक बधाई ।
आदर्णीय अजय तिवारी साहब आपकी सारगर्भित टिप्पणी सचमुच मुझे उर्जावान बनाती है। आपका बहुत बहुत आभार।
आदर्णीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी ग़ज़ल पसन्दगी के लिये शुक्रिया। नया साल आपके एवं आपके परिवार को मंगलमय हो।
आदर्णीय तस्दीक़ अहमद खान साहब आपकेअमूल्य सुझाव एवं इस्लाह के लिये सादर आभार।
आदर्णीय समर कबीर साहब आपकेअमूल्य सुझाव के लिये बहुत शुक्रिया।
आदर्णीय अफरोज साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदर्णीय मोहित मिश्रा जी ग़ज़ल सराहना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
सुन्दर भावों का समावेश किया है आदरणीय ग़ज़ल में..सादर
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