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ग़ज़ल (मिलाओ किसी से नज़र धीरे धीरे )

ग़ज़ल (मिलाओ किसी से नज़र धीरे धीरे )
-------------------------------------------------
(फऊलन -फऊलन -फऊलन -फऊलन )

मिलाओ किसी से नज़र धीरे धीरे |
निकल जाएगा दिल से डर धीरे धीरे |

मुहब्बत में अंजाम की फ़िक्र मत कर
करे है यह दिल पे असर धीरे धीरे |

अभी तुझको जी भर के देखा कहाँ है
निगाहों में आ के ठहर धीरे धीरे |

मिलेगा वफ़ा का सिला सब्र तो कर
वो लेते हैं दिल की ख़बर धीरे धीरे |

यही इंतहा है जुनूने वफ़ा की
लगे उनका घर अपना घर धीरे धीरे |

न सैयाद पर कर भरोसा तू बुलबुल
कतर देगा तेरे ये पर धीरे धीरे |

वो तस्दीक़ आए अज़ीज़ों को लेकर
जले है हमारा जिगर धीरे धीरे |

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 17, 2017 at 5:45pm

आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहिब ,आदाब , बहुत उम्दा ग़ज़ल , मुबारकबाद कुबूल करे |

Comment by नाथ सोनांचली on December 17, 2017 at 4:49pm

आद तस्दीक अहमद खान साहब सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल, बहुत उम्दा।

मिलेगा वफ़ा का सिला सब्र तो कर 

वो लेते हैं दिल की ख़बर धीरे धीरे |

यही इंतहा है जुनूने वफ़ा की 

लगे उनका घर अपना घर धीरे धीरे |

बाकमाल ग़ज़ल। शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद कुबूल करें।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 17, 2017 at 10:46am

मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Mohammed Arif on December 17, 2017 at 7:43am

मुहब्बत में अंजाम की फ़िक्र मत कर 
करे है यह दिल पे असर धीरे धीरे |  वाह! वाह! बहुत ही सच्चा शे'र हुआ है।

  • शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी ।

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