ग़ज़ल (मिलाओ किसी से नज़र धीरे धीरे )
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(फऊलन -फऊलन -फऊलन -फऊलन )
मिलाओ किसी से नज़र धीरे धीरे |
निकल जाएगा दिल से डर धीरे धीरे |
मुहब्बत में अंजाम की फ़िक्र मत कर
करे है यह दिल पे असर धीरे धीरे |
अभी तुझको जी भर के देखा कहाँ है
निगाहों में आ के ठहर धीरे धीरे |
मिलेगा वफ़ा का सिला सब्र तो कर
वो लेते हैं दिल की ख़बर धीरे धीरे |
यही इंतहा है जुनूने वफ़ा की
लगे उनका घर अपना घर धीरे धीरे |
न सैयाद पर कर भरोसा तू बुलबुल
कतर देगा तेरे ये पर धीरे धीरे |
वो तस्दीक़ आए अज़ीज़ों को लेकर
जले है हमारा जिगर धीरे धीरे |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहिब ,आदाब , बहुत उम्दा ग़ज़ल , मुबारकबाद कुबूल करे |
आद तस्दीक अहमद खान साहब सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल, बहुत उम्दा।
मिलेगा वफ़ा का सिला सब्र तो कर
वो लेते हैं दिल की ख़बर धीरे धीरे |
यही इंतहा है जुनूने वफ़ा की
लगे उनका घर अपना घर धीरे धीरे |
बाकमाल ग़ज़ल। शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद कुबूल करें।
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
मुहब्बत में अंजाम की फ़िक्र मत कर
करे है यह दिल पे असर धीरे धीरे | वाह! वाह! बहुत ही सच्चा शे'र हुआ है।
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