For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जानामि त्वां प्रकृतिपुरुषं कामरूपं मघोन:[कालिदास कृत ‘मेघदूत’ की कथा-वस्तु-प्रथम भाग] - डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव

 यक्षराज कुबेर की राजधानी अलकापुरी में वास करने वाला एक यक्ष प्रमादवश सेवा में हुई किसी चूक के कारण यक्षराज के कोप का भाजन बना . कुबेर ने उसे शाप दिया कि वह वर्ष पर्यंत निर्वासित रहकर अपनी पत्नी का वियोग सहे. यक्ष का प्रमाद कालिदास ने स्पष्ट नही किया . कितु टीकाकारों ने निज अनुमान से कई बड़े ही विदग्ध निष्कर्ष  निकाले हैं. इनमे सबसे प्रचलित और बहुमान्य निष्कर्ष यह है कि कालिदास का अभागा शापित यक्ष कुबेर का बागबान था और उसके प्रमाद से इंद्र का विश्रुत हाथी ऐरावत एक दिन कुबेर के विशाल मनोरम उपवन को रौंद कर चला गया. इस प्रकार यक्ष के लिए यह दारुण शाप फलीभूत हुआ.  कुछ विद्वानों के मत से यक्ष कुबेर को पूजा के लिए फूल दिया करता था. एक दिन प्रमाद के कारण वह ताजे फूल नहीं चुन सका और बासी फूल दे आया. तब इस कारण से उसे कुबेर का कोप-भाजन बनना पड़ा.  इन  लोक-विश्वास की कथाओं से मेघदूत का आर्त्त यक्ष एक साधारण सेवक से अधिक प्रतीत नहीं होता. कितु मेघदूत के ‘उत्तरमेघ’ में यक्ष ने अपने महल का जो नक्शा खींचा है, वह किसी साधारण माली के लिए आकाश-कुसुम से कम नहीं है. उस यक्ष का घर कुबेर के महल से उत्तर की और स्थित है . उसका तोरण इन्द्रधनुष के सदृश्य है, जिसके कारण यक्ष का घर दूर से ही पहचान में आता है. घर के अंदर मंदार का एक बाल-वृक्ष है. उस घर में एक बावड़ी  भी है जिसमें  उतरने की सीढियां पन्ने के सिलों से बनी हैं और उसमे बिल्लौर की चिकनी नालों वाले स्वर्ण-कमल अटे पड़े हैं. उस बावड़ी के किनारे एक क्रीडा-पर्वत है, जिसकी चोटी सुन्दर इंद्र नील-मणियों के जड़ाव से बनी है. उसके चारों और कदली वृक्षों का कटघरा है. उस क्रीडा -पर्वत में कुबरक की बाढ़ से घिरा मोती-मंडप है. इसके एक ओर लाल फूलों वाला अशोक और दूसरी ओर मौलसिरी का पेड़ है. इन दोनों वृक्षों के बीच सोने की बनी हुयी एक छतरी है, जिसके सिरे पर बिल्लौर का फलक लगा है और मूल में हरे बांस के सदृश मरकत मणियाँ जडी हैं . यक्ष-प्रिया के कंगन की थाप पर नीले कंठ वाला मोर उस छतरी पर बैठता है.  इतना ही नहीं उस यक्ष के द्वार-स्तम्भ पर शंख और कमल की आकृतियां विकीर्ण हैं . प्रश्न यह उठता है कि क्या कोइ माली इतना सम्पन्न हो सकता है ? उसका घर इन्द्रधनुषी तोरण के कारण दूर से ही पहचाना जाता है अर्थात अलकापुरी के अन्य  घर इस यक्ष के घर से अधिक भव्य नही हैं. तब तो यह विलक्षण माली है.  कालिदास ने स्पष्ट नही किया कि वह यक्ष कौन था और उससे क्या प्रमाद हुआ. अतः इस पर और अधिक माथा-पच्ची  करना उचित नही होगा. पर इतना तो तय है यक्ष से कुछ अपराध अवश्य हुआ .

कुबेर की राजधानी अलकापुरी भी कम रहस्यमय नही है. ‘स्वर्गादपि गरीयसी’ अलकापुरी कैलाश पर्वत की गोद में बसी हुयी है. वह ऐसी लगती है मानो कोई कामिनी अपने प्रिय की गोद में बैठी हो और उस पर्वत-प्रदेश से निकल कर  बहती गंगा की धारा मानो उस कामिनी के शरीर से सरकी हुयी साड़ी हो. वहां अलका में पावस के दिनों में घिरे हुए बादल ऐसे शोभित होते हैं जैसे वनिताओं के सिर पर मोतियों से गुंथे हुए जूड़े हों. कालिदास की अलकापुरी काल्पनिक है या वास्तविक, इसे लेकर विद्वानों में बड़े मतभेद हैं . कुछ इसका सम्बन्ध महाभारत में वर्णित अलकापुरी से जोड़ते हैं . पर यह अलकापुरी मानसरोवर के पास है . मानसरोवर और कैलाश में गंगा कहाँ से आ गईं ? लोगों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया . अलकनंदा नदी गंगा की सहायक नदी है और अलकापुरी से इसका शब्द–साम्य भी है. पर मेघदूत की अलका में कुबेर के मित्र शंकर का वास है. वहां बाहरी उद्यान में बैठे हुए भगवान् शिव के मस्तक से छिटकती हुई चांदनी अलकापुरी के भवनों को धवलित करती है . भगवान शंकर के वास स्थान पर भोग-विलास और काम के लिये  स्थान नही होना चाहिए पर  अलकापुरी की वनिताये ‘भोगावती’ और ‘अमरावती’ को भी मात देने वाली हैं. वे ही नही उनके प्रेमी यक्ष तक अधिकाधिक भोगरत दीख पड़ते हैं. ‘मेघदूत’ का कथानायक यक्ष भी कामार्त्त होकर ही प्रिय तक अपना सन्देश बजरिये मेघ भेजने को उद्यत है . कालिदास के अनुसार अलका की बधुयें षडऋतुओं के फूलों से अपना शृंगार करती हैं. हेमंत में टटके बाल-कुंद उनके घुँघराले बालों में गूंथे जाते हैं. शिशिर में वे लोध्र पुष्पों का पीला पराग मुख की शोभा के लिए लगाती हैं. बसंत में कुरबक के नए फूलों से जूड़ा सजाती हैं. कदम्ब पुष्पों से अपनी मांग सजाती हैं. पुष्कर वाद्यों की धुन पर कल्पवृक्ष से ‘रतिफल’ नामक मधु प्राप्त कर पीती हैं. मंदाकिनी के शीतल जल में पवनों का सेवन करती हुयी मंदार वृक्ष की छाया में धूप से स्वयं को बचाती हुई नाना क्रीड़ायें करती हैं . सूर्योदय काल में अलका का राज-पथ अभिसार कर लौटती कामिनियों की चाल के वेग से केशो से सरक कर गिरे मंदार फूलों, कान से ढरके झुमकों, बालों से झरते मुक्ता-जालों और हार के टूटे पतित मनकों के प्राचुर्य से पहचाना जाता है. ऐसी है कुबेर की वह विश्रुत अलकापुरी और ऊपर से तुर्रा यह भी कि भगवान् शिव के वास के कारण कामदेव भौरों की प्रत्यंचा वाले अपने धनुष पर अपने बाणों का संधान करने से डरता है. कल्पना कीजिए यदि कामदेव के पुष्प-बाण भी चलते तो अलका की वनिताओं का क्या हाल होता ? ऐसे पुरी का निवासी यक्ष यदि एक वर्ष के लिए निर्वासित हुआ तो उसका विरहाकुल  होना  बड़ी स्वाभाविक सी बात है . 

(मौलिक  एवं अप्रकाशित )

Views: 723

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 1, 2017 at 6:41pm
आदरणीय गोपाल सर इस धार्मिक पृष्ठ भूमि की रचना से एक नयी जानकारी मिली शब्द संयोजन और चित्रण भी बहुत पसंद आया। कमाल की इस रचना के लिए ढेर सारी बधाई सादर
Comment by Samar kabeer on October 1, 2017 at 5:54pm
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Sep 30

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service