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अपने ग़म को मैं........संतोष

अरकान-फ़ाइलातून मफ़ाइलुन फेलुन

अपने ग़म को मैं छुपा लेता हूँ
सबकी ख़ुशियों का मज़ा लेता हूँ

दिल में जब याद का उठे तूफ़ां
तेरी तस्वीर बना लेता हूँ

सामने जब वो मेरे आता है
अपने सर को मैं झुका लेता हूँ

जब भी होता है वो ख़फ़ा मुझसे
प्यार से उसको मना लेता हूँ

दिल में जब टीस मेरे उठती है
अश्क मैं छुप के बहा लेता हूँ
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by santosh khirwadkar on September 28, 2017 at 11:56am
धन्यवाद आदरणीय शिज्जु साहब ....
Comment by santosh khirwadkar on September 28, 2017 at 11:56am
शुक्रिया आदरणीय अहमद साहब...अवश्य ही कोशिश करूँगा!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 28, 2017 at 11:33am

आ. संतोष जी अच्छी कोशिश है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 28, 2017 at 11:24am
जनाब संतोष साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।मेरे हिसाब से आपकी गजलके अरकान यह हैं - फ़ाइलातुन -फइ लातुन-फेलुंन (2122-1122-22) ,लय के हिसाब से शेर 2 और शेर 4 का उला मिसरा इस तरह करके देखिए
जब उठे याद का दिल में तूफां--
जब भी होता है खफा वो मुझ से
Comment by santosh khirwadkar on September 28, 2017 at 10:58am
शुक्रिया आदरणीय समर साहब ...ये बात पुनः इस मंच से स्पष्ट कर दूँ कि आप के आशीर्वाद के बग़ैर ये संभव नहीं था!
मेरे शब्दों में प्राण देने के लिये हृदय से धन्यवाद एवं आभार....
Comment by Samar kabeer on September 28, 2017 at 10:35am
जनाब संतोष जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

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