उसने सिला गये बेसन को थाली में फैलाकर चूल्हे की गरम राख को थोडा सार कर उस पर रख दिया था ताकि पसीजन से आई बदबू खत्म हो जाए. आज पहली बार रमेश्या ने उसे ढाई सौ ग्राम तेल लाकर दिया था घर में. वरना तो वह अपनी सारी कमाई शराब में ही फूक देता था. वह भी काम से आते वक्त बीबी जी से दो प्याज माँगकर ले आई थी.
बाहर आसमान भी आज उसके घर में खुशी बरसाने के भाव मे था. चाँद का उजाला ना सही इस छोटे से सुख में घुमडते बादलों सा उसका मन झूम-झूम उठा था.
"आज ही तो तू आई थी मेरे जीवन में और तूने मुझे संवार दिया, "अब से तेरे मन की" , कसम से अब कभी भी बोतल को हात ना लगाउँगा. उसने वादा किया था. मैं तेरे लिए चोली-कपडा लेकर आता हूँ , कुछ रुपये तू भी मिला दे इसमे. रुपये लेकर वह निकल गया था घर से.
वो पगली भी सब दुख भूल गई उसके दो मीठे बोल में . हाथ मूँह धोकर साफ़-सुथरे कपडे पहने. पहले दो-दो घूँट चाय बना बच्चो को पिलाई. प्याज काटकर पकौडॊ की तैयारी की. साग-रोटी बनाया. बच्चे बडे उमंग मे थे आज अपनी माँ का बदला रूप देखकर.
" अम्मा कुछ खास है क्या आज?"
"हा रे! तुम्हारा बापू आज एक वादा करके गया है मुझसे ."
बच्चो ने बस एक दूसरे को देखा और खा-पीकर सो गये.
वह इंतजार में थी कि रमेश आए तो संग खाए. तभी गरम-गरम पकौड़ीयां उतार लेगी. . बाहर बादल चमकने के साथ-साथ जोर-जोर से गडगडा कर बरस रहे थे. ठंडी हवा की मीठी छुअन से उसकी आँखे उनिंदा हो चली थी कि जोर जोर से दरवाजे की खडखडाहट से चेतन हुई
" कहाँ मर गई हरामजादी...हाथ में बोतल लिए ही ... पकौडे...चल जल्दी ...उतार... ."
रमिया ने उसके हाथ से बोतल छीन उसके ही सर पर दे मारी. वो औंधा गिर पडा. नशे ने उसे वैसे भी कमजोर कर दिया था.
अब बादल अंदर भी बरसने लगे. बस! पानी खारा था.
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