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कहीं मलबा कहीं पत्थर कहीं मकड़ी के हैं जाले
कहानी गाँव की कहते घरों के आज ये ताले
किया बर्बाद मौसम ने छुड़ाया गाँव घर आँगन
यहाँ दिन रात रिसते हैं दिलों में गम के ये छाले
भटकते शह्र में फिरते मिले दो वक्त की रोटी
सिसकते गाँव के चूल्हे तड़पते दीप के आले*
कहाँ संगीत झरनों के परिंदों की कहाँ चहकन
निकलते अब पहाड़ों के सुरों से दर्द के नाले
लुटा सुख चैन सब अपना कहें किससे कहाँ जाएं
उधर वो चीखते पर्वत इधर चुप ये जहाँ वाले
कहीं सौगात खुशियों की मिले उनसे किसानों को
सहम जाते पहाड़ों पर घिरें बादल जहाँ काले
फकत मजबूरियाँ अपनी कलेजों पर धरे पत्थर
उसी को छोड़ना पड़ता हमें जिस गोद ने पाले
आले*=दीपक रखने का स्थान ,नाले=आहें ,पाले=पालन पोषण किया
----मौलिक एवं अप्रकाशित
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