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नूर की हिंदी ग़ज़ल-बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?

२१२२, २१२२,२१२ 
.
बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?
हो गए हैं स्वप्न सब साकार क्या?
.

सत्य से बढ़कर तो ईश्वर भी नहीं,
राष्ट्र क्या फिर मित्र क्या परिवार क्या?
.

राष्ट्र की सेवा सभी का धर्म है,
कर रहे हो तुम कोई उपकार क्या?
.

देख कर इक कोमलांगी के अधर,   
कल्पना लेने लगी आकार क्या? 
.

आचरण में धर्मग्रंथो को उतार,
बाद में दे ज्ञान उनका सार क्या.  

.
निलेश "नूर"
.
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2017 at 8:53am

शुक्रिया आ. सतविन्द्र जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2017 at 8:53am

शुक्रिया आ. गिरिराज जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2017 at 8:53am

शुक्रिया आ. बृजेश जी 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 15, 2017 at 5:33pm
वाःहःहः वाह्ह्ह्ह्,आदरणीय नीलेश नूर जी,उम्दा अशआर हुए हैं।जय हो!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 15, 2017 at 9:42am

आदरनीय नीलेश भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है .. बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 13, 2017 at 10:18pm
आदरणीय बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई हर एक शे'र लाजबाब..
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2017 at 10:51am

शुक्रिया आ. योगराज सर ..


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 12, 2017 at 10:45am

//देख कर इक कोमलांगी के अधर,    
कल्पना लेने लगी आकार क्या? //

वाह वाह वाह! क्या तखय्युल है, आफरीन आ० भाई निलेश नूर जी. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2017 at 8:30am

शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ सिंह जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2017 at 8:29am

शुक्रिया आ. डॉ. आशुतोष जी 

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