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ग़ज़ल(यहीं डूब जाने को जी चाहता है )

ग़ज़ल
--------
(फऊलन-फऊलन -फऊलन -फऊलन )

लगी को बुझाने को जी चाहता है |
तुम्हें कब से पाने को जी चाहता है |

यक़ीनन बड़ी मुज़त् रिब है शबे ग़म
मगर मुस्कराने को जी चाहता है |

समुंदर से गहरी हैं आँखें तुम्हारी
यहीं डूब जाने को जी चाहता है |

तेरे नाम में भी बहुत है हलावत
इसे लब पे लाने को जी चाहता है |

तेरे अहदे माज़ी से वाक़िफ़ हैं फिर भी
नयी चोट खाने को जी चाहता है |

मुसलसल मेरा इम्तहाँ लेने वाले
तुझे आज़माने को जी चाहता है |

मुझे याद तस्दीक़ आते हैं जब वो
ग़ज़ल गुनगुनाने को जी चाहता है |


मुज़त्रिब-----बेक़रार
हलावत------मिठास
माज़ी ---गुज़रा हुआ
(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 5, 2017 at 7:30pm
मुहतरम जनाब गुरप्रीत साहिब,ग़ज़ल में शिरकत और आपकी हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 5, 2017 at 7:05pm
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया,महरबानी
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 5, 2017 at 7:04pm
आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी बहुत ही प्यारी ग़ज़ल कही है आपने...पूरी ग़ज़ल ही बहुत पसंद आई.
Comment by Mohammed Arif on May 5, 2017 at 6:00pm
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 5, 2017 at 5:52pm
मुहतरम जनाब नीलेश साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 8:39am

आ. तस्दीक़ अहमद साहब 
एक सादा फिर भी ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई 
सादर 

कृपया ध्यान दे...

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