For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

#गजल#(खबरी)
***
22 22 22 22
बात कहूँ मैं मिर्च मिला के
सुन लेता हूँ कान लगा के।1

दूर कहीं से लाता कौड़ी
चिपका देता खूब सटा के।2

मेरी कथनी हरदम साबित
बढ़ जाता हूँ बात बढ़ा के।3

शास्त्र-पुराण उखड़ जाते हैं
मैं रहता हूँ पाँव जमा के।4

मेरा मौसम हरदम रहता
क्या कर सकते मुँह बिचका के।5

जूतम पैजार हुई सबकी,
जूझ रहे फिर कुर्सी पा के।6

चाहत की बलिहारी कितनी!
रखता मैं हर बार जगा के।7

शब्द सँवरते कहकर दिल की
बलते फिर-फिर आग लगा के।8

तैरे चाहे कोई जितना
कब निकलामँझधार नहा के?9

रह सकते बेदाग कभी क्या?
काजल के कमरे में आ के।10

कौवे की पहचान छिपेगी?
चाहे कोई गाना गा के।11
@मौलिक व अप्रकाशित

Views: 769

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neelam Upadhyaya on February 20, 2017 at 12:27pm

अदरणीय मनन जी, बहुत ही दिलचस्प रचना है । बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Manan Kumar singh on February 19, 2017 at 9:35pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी,गजल के तत्व आपको जँचे, यह मेरी भी और गजल की भी खुशकिस्मती है।आपका दिली तौर पर आभारी हूँ।
Comment by Manan Kumar singh on February 19, 2017 at 9:33pm
आदरणीय आरिफ भाई,आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Manan Kumar singh on February 19, 2017 at 9:32pm
आदरणीय सुरेन्द्रनाथ जी,आपकी टिप्पणी प्रेरणास्पद है।मैं दिली तौर पर आपका आभारी हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2017 at 7:07pm

बहुत मजेदार ग़ज़ल कही है बढ़िया कटाक्ष आद० मनन जी बहुत वहुत बधाई 

Comment by Mohammed Arif on February 19, 2017 at 4:45pm
आदरणीय मनन जी आदाब, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल कीजिए ।
Comment by नाथ सोनांचली on February 19, 2017 at 3:01pm
आदरणीय मनन कुमार जी सादर अभिवादन। उम्दा गजल, पढ़ कर मजा आ गया, बार बार पढ़ने को जी कर रहा है, । बहुत मस्त लिखा भाई जी आपने। बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

ajay sharma shared a profile on Facebook
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service