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#गजल#(खबरी)
***
22 22 22 22
बात कहूँ मैं मिर्च मिला के
सुन लेता हूँ कान लगा के।1

दूर कहीं से लाता कौड़ी
चिपका देता खूब सटा के।2

मेरी कथनी हरदम साबित
बढ़ जाता हूँ बात बढ़ा के।3

शास्त्र-पुराण उखड़ जाते हैं
मैं रहता हूँ पाँव जमा के।4

मेरा मौसम हरदम रहता
क्या कर सकते मुँह बिचका के।5

जूतम पैजार हुई सबकी,
जूझ रहे फिर कुर्सी पा के।6

चाहत की बलिहारी कितनी!
रखता मैं हर बार जगा के।7

शब्द सँवरते कहकर दिल की
बलते फिर-फिर आग लगा के।8

तैरे चाहे कोई जितना
कब निकलामँझधार नहा के?9

रह सकते बेदाग कभी क्या?
काजल के कमरे में आ के।10

कौवे की पहचान छिपेगी?
चाहे कोई गाना गा के।11
@मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Manan Kumar singh on February 24, 2017 at 10:01pm
आपका बहुत बहुत आभार आ.गिरिराज भाई।छोटी बहर में कुछ कहने का प्रयास किया है मैंने,आपकी स्वीकृति आश्वस्त करती है मुझे,सादर।
Comment by Manan Kumar singh on February 24, 2017 at 9:58pm
आपका आभार आदरणीय महेंद्र जी।

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2017 at 7:53am

आदरनीय मनन भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ आपको ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2017 at 7:53am

आदरनीय मनन भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ आपको ।

Comment by Mahendra Kumar on February 22, 2017 at 8:59pm
आदरणीय मनन जी,इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by Manan Kumar singh on February 20, 2017 at 10:59pm

आदरणीय समर जी, सुधार हेतु इंगित करने के लिए आपका शुक्रिया i

Comment by Manan Kumar singh on February 20, 2017 at 10:58pm

आभार आदरणीय शिज्जू भाई, ध्यान दिलाने के लिए। 

Comment by Manan Kumar singh on February 20, 2017 at 10:57pm

आभार आदरणीया नीलम जी। 

Comment by Samar kabeer on February 20, 2017 at 3:03pm
जनाब मन्नकुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
तक़ाबुल-ए-रदीफ़ के बारे में बता ही दिया जनाब शिज्जु भाई ने ।
'जूतम पैज़ार हुई सबकी"
ये मिसरा बह्र में तो है मगर लय में नहीं है,देखियेगा ।
'दाग़ लगे मत,कैसे होगा'
इस मिसरे में 'मत'शब्द भर्ती का है, जो 'न'की जगह लिया गया है,इसे यूँ कर सकते हैं :-
"दाग़ न लागे कैसे होगा"

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Comment by शिज्जु "शकूर" on February 20, 2017 at 12:44pm

बहुत सुंदर आदरणीय मनन कुमार सिह जी, बहुत-बहुत बधाई आपको। हालाँकि दूसरे और नौवें शेर मे तक़ाबुले रदीफ नुमायाँ है

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