For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब भी गाया तुमको गाया , तुम बिन मेरे गीत अधूरे,
तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,

तुमको ही अपने जीवन के नस नस में बहता ज्वार कहा,
मेरे मन की सीपी के तुम ही हो पहला प्यार कहा,
एकाकी मन के आँगन में, बरसो बन कर मेघ घनेरे,

तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,

तुम इन्हीं पुरानी राहों के राही हो कैसे भूल गये,
आँखों से आँखों में गढ़ना सपन सुहाने भूल गये,
तुमको ही मन गुनता रहता हर दिन, हर पल, शाम सवेरे,
तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,


जो पल तुम संग बीत गया, वो पल मेरे मधुमास प्रिय,
ये जो तुम बिन बीत रहा, ये पल मेरे वनवास प्रिय,
मैं मीरा सी प्रेम दीवानी, आन मिलो घनश्याम मेरे
तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 506

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2017 at 11:29am

ऑ० अनीता जी अच्छी गीत रचना हुई है .हार्दिक बधाई . पर कई स्थानों पर ले डगमगा रही है .इस पर विचार करें .

यथा -मेरे मन की सीपी के तुम ही हो पहला प्यार कहा, इसे इस प्रकार कहें तो ले और बेहतर होगी

मेरे मन की सीपी के हो तुम ही पहला प्यार कहा,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 2, 2017 at 9:02am

आदरणीया , गीत रचना अच्छी हुई है , हार्दिक बधाइयाँ । आ. पंकज भाई की सला भी सही लगती है ।

साथ ही -- अधूरे और कोरे की तुकांतता भी बहुत सही नही है -- दूसरे दर्ज़े की तुकांता मानी जाती है ,  अगर  समान व्यंजन के पहले का स्वर मेल भी हो तो उसे उच्च तुकांतता मानते हैं -- जैसे  कोरे - मोरे , तोरे  ---- ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 29, 2017 at 9:05pm
आदरणीय अनीता मौर्या जी मुझे भी लगा कि गीत इसी निमित्त प्रस्तुत है कि सुझाव दिए जाएं, तो लीजिये कुछ बिन्दु जिन पर और प्रयास किये जाने आवश्यक हैं प्रस्तुत हैं-
"तुमको ही अपने जीवन के नस नस में बहता ज्वार कहा,
मेरे मन की सीपी के तुम ही हो पहला प्यार कहा"-----यहाँ मेरे जीवन के नस नस में?

उचित नहीं है, इसे आप यूँ कहते तो अच्छा रहता-
मैंने तुमको ही मेरी नस नस में बहता ज्वार लिखा
अथवा- तुमको ही अपने इस तन की नस नस में बहता ज्वार लिखा

जीवन की नस नस, विज्ञान की दृष्टि से सही नहीं है, जीवन की नस नहीं होती, नस तन की होती है।।

इसके अलावा लय में कई जगह बाधा महसूस हो रही है
Comment by Anita Maurya on January 29, 2017 at 12:15pm

ये गीत समीक्षा हेतु ही प्रेषित किया है मैंने, कृपया त्रुटियां बतायें ... 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 29, 2017 at 11:19am
आदरणीय अनीता जी अच्छा प्रयास हुआ है, कुछ और मेहनत ज़रूरी है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .दीपावली

दोहा पंचक. . . . . . दीपावलीदीप जले हर द्वार पर, जग में हो उजियार  ।आपस के सद्भाव से, रोशन हो संसार…See More
14 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
51 minutes ago
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
13 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
14 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
15 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए ।"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service