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गुनगुनाकर देखिएगा आप भी यह गीत मेरा ।।
दोपहर की धूप में आभास होगा नव सवेरा ।।
गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,
तप्त सूरज शीश पर जब अग्नि वर्षा कर रहा हो,
ऊष्णता के हृदविदारक तीर तरकस भर रहा हो,
तब प्रभाती गीत की तुम छाँव में करना बसेरा ।।(1)
दोपहर की धूप में,,,,,,,,,,,,,
गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,
कोकिला के कण्ठ से माँ भारती का गान सुनना,
व्योम में प्रतिध्वनित होती सप्त सरगम तान सुनना,
भूलकर भी भूलना मत चित्र प्राची का उकेरा ।।(2)
दोपहर की धूप में,,,,,,,,,,,,
गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,
भू धरा का भाल कोई स्वेद कण जब चूम लेगा,
मन भ्रमर श्रम भूल सारा सृष्टि पल में घूम लेगा,
स्नेह आतुर अलि कुसुम का द्वार झाँके ज्यों लुटेरा ।।(3)
दोपहर की धूप में,,,,,,,,,,,
गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,
चिलचिलाती धूप में मधुमक्खियों का शोर सुनकर,
नृत्य भी करनें लगें जब जंगलों में मोर सुनकर,
कण्ठ से स्वर नाद अनहद बीन का निकले सपेरा ।।(4)
दोपहर की धूप में,,,,,,,,,,,,,,,,
गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,
"डॉ राज़ बुन्देली"
13/01/2017
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
वाह आदरणीय विरोधाभासों का भरपूर प्रयोग किया है आपने. विरोधाभासी कथ्य रचना का आकर्षण बढाते हैं बशर्ते उनमें सार्थकता हो. आख़िरी बंद की पहली दो पंक्तियों के अंत में 'सुनकर' शब्द के प्रयोग का उद्देश्य मुझे स्पष्ट न हो सका. कृपया मार्गदर्शन करने का कष्ट करें.
सादर!
आदरणीय राज बुन्देली जी, आपने बहुत सुन्दर गीत लिखा है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. गीत का मुखड़ा बहुत आकर्षक है. पहला अन्तरा भी भाव स्तर पर प्रभावकारी है. पहला बंद पढ़ते हुए एक विचार आया कि सूर्य तो तप्त ही होता है. यही उसकी प्रकृति है. सूर्य कभी शीतल हो ही नहीं सकता अतः तप्त विशेषण सूर्य के साथ ही सम्मिलित है. इसलिए इसे //सूर्य सीधे शीश पर जब अग्नि वर्षा कर रहा हो// भी कहा जा सकता है. इसी बंद में "हृद-विदारक' शब्द का प्रयोग उचित नहीं लग रहा. सही शब्द "हृदय-विदारक" है और इसी रूप में प्रचलित भी है. फिर भी यदि विदारक शब्द पद को रखना ही है तो इसे 'हिय-विदारक' लिखा जाना चाहिए.
दूसरा अंतरा बहुत अच्छा बना है. तीसरे अंतरे में 'भू-धरा' जैसे समानार्थी शब्दों का प्रयोग उचित नहीं लग रहा है. क्या इस पंक्ति को ऐसे नहीं लिख सकते?- //जब धरा का भाल कोई स्वेद कण जब चूम लेगा//
चौथे अंतरे में //कण्ठ से स्वर नाद अनहद बीन का निकले सपेरा // इस पंक्ति का तात्पर्य नहीं समझ सका हूँ. मार्गदर्शन निवेदित है.
सादर
आदरनीय राज भाई , बढ़िया गीत रचा है आपने हार्दिक , बधाइयाँ ।
आदरणीय़,,,,
राम सहाय जी सादर आभार,,,,,,,
very nice sir
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