For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नये साल का नया सूरज

नये साल का नया सूरज   
बहुत चाह है कि 
अब के जो  सूर्य नूतन वर्ष का उगे 
तो सूरज सा उगे 
सूरजमुखी  सा न उगे 
सूरजमुखी का क्या है 
फालतू सा पालतू सा 
बिना रोपे  नहीं  उगेगा 
किसी भी हाल में  रोपना पड़ेगा 
धरा पर जबरन थोपना पड़ेगा 
झाड़ तो झाड़ हैं जीवट हैं  खुद्दार है 
झाड़ झंखाड़ों को स्वंय  उगना है 
खेत में ,बगीचे में  तलैया में ,ताल में 
दुष्कर से दुष्करतम असहय हाल में 
झाड़ झंखाड़ को स्वंय  उगना  है 
जो बीज बड़े नाम वाले नहीं होते 
जो अत्याधुनिक लैबों ने सम्भाले नहीं होते 
उनको भी तो उगना होता  ही है 
उठना होता ही है 
धरती की गोद  से धरती  के भाल तक 
गिर  कर सम्भलना होता है 
कमाल के भी कमाल तक 
उनके लिए फैलाया करती है धरा अपना दामन 
माँगा करती है समन्दर से  बादल 
बादल से अमृत 
जिलाती रहती है  पिलाती रहती है 
प्यास को आस को 
उनके लिए फैलाया करती है धरा अपना दामन 
 माँगा करती है   क्षितिज  से सूरज 
सूरज से तपस ,
तपाती रहती है उर्जाती रहती है 
 गहरे श्वास को उच्छ्वास  को 
उनके लिए फैलाया करती है धरा अपना दामन 
माँगा करती है वक्त से वक्त 
वक्त से रातें 
सपने दिखाती रहती है ,जगाती रहती है 
जागते सोते  विश्वास को
 
जी जाता है झाड़ 
जम जाता है झाड़ 
पर जब रोप दिया जाता है कोई  सूरजमुखी 
तो सारे समीकरण बदल जाते हैं 
सूरजमुखी के बहाने लगाते है  माली 
और सारा का सारा  बादल समूचा कील जाते हैं 
सूरजमुखी के बहाने  लगाते है  माली 
और सारा का सारा  सूरज समूचा  लील जाते हैं 
और फिर  लगा देते हैं   झाड़ पर सारा दोष 
स्वंय  कचहरी से बाईज्जत बरी हो जाते हैं 
सूरजमुखी  का क्या 
पालतू सा फालतू सा 
जिधर सूरज  को देखा 
उसी तरफ  फिर गए 
सूरज  उगा  तो सर उठाया 
सूरज छिपा तो  गिर गए 
सपने भी उसी से 
सरोकार भी उसी से 
कल्पना भी उसी की 
कारोबार भी उसी के 
 हमेशा इकतरफा ही होता जाता है फैसला 
झाड़ को ही  होती जाती है सज़ा 
अपील नहीं होती 
दलील नहीं होती
सज़ा होती है  झाड़ को 
उखाड़ फैंका  जाता है झाड़ को 
इसलिए 
बहुत चाह है किअब के   
जब सूर्य नूतन वर्ष का उगे 
तो सूरज सा उगे 
सूरजमुखी  सा न उगे  
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 428

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on December 18, 2016 at 10:31am
आदरणीया अमिता जी, बढ़िया वैचारिक कविता लिखी है आपने। इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।
Comment by Samar kabeer on December 16, 2016 at 4:54pm
मोहतरमा अमिता तिवारी जी आदाब,नये साल से उम्मीदें वाबस्ता करती अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service