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ग़ज़ल - मेरे गर्दिशों का आलम तुझे देखना न आया

ग़ज़ल

1121 2122 1121 2122
था नसीब का तकाजा वो बना ठना न आया ।
मेरे गर्दिशों का आलम तुझे देखना न आया ।।

कई जख़्म सह गए हम ये निशान कह रहे हैं ।
तेरी बदसलूकियों पे , मुझे रूठना न आया।।

ये वफ़ा की थी तिज़ारत,मैं समझ सका न तुझको ।
है सितम का इन्तिहाँ ये , मुझे टूटना न आया ।।

हुए हम भी बे खबर जब,वो नई नई थी बंदिश।
वो ग़ज़ल की तर्जुमा थी , हमे झूमना न आया ।।

था सराफ़तों का मंजर ,वो झुकी हुई निगाहें ।
बड़ी तेज आंधियाँ थीं , कभी लूटना न आया ।।

ऐ बहार मत गुमां कर,तू खुदा की रहमतों पर ।
मैं शजर हूँ उस खिजाँ का, जिसे सूखना न आया ।।

ये है मनचलों की बस्ती,न उठा के चल तू चिलमन।
यहां बेअदब ज़माना , तुझे घूमना न आया ।।

न सुना तू वो कहानी ,जो थी मैकदों पे गुजरी ।
वो शराब थी नज़र की, जिसे घूटना न आया ।।

है गिरफ्त में नशेमन , हैं जमानतें भी ख़ारिज ।
ये तो इश्क की सजा है कभी छूटना न आया ।।

रहे देखते किनारे , वो नदी की तिश्नगी थी ।
था जो गफलतों में सागर ,उसे ढूढ़ना न आया ।।

जो तड़प तड़प के लिक्खी न वो मिट सकी इबारत।
हैं गमों के हर्फ़ जिन्दा हमें भूलना ना न आया ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी

-- नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on November 6, 2016 at 8:50am
आदरणीय रामबली गुप्ता जी सादर आभार
Comment by रामबली गुप्ता on October 31, 2016 at 8:51pm
वाह वाह सभी शैर बेहतरीन हुए हैं भाई नवीन त्रिपाठी जी। दिल से बधाई लीजिये।

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