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गजल- जो नेक दिल हो जमाना उसे सताता है

बह्र 1212 1122 1212 112/22

जो नेक दिल हो ज़माना उसे सताता है
मुसीबतों से मगर वो न बौखलाता है।

जवान हार से भी जीत खींच लाता है
जो हार मान ले मातम वही मनाता है।।

तुम्हारे साथ में गुज़रा हरेक पल जानम
हयात में वही रस्ता मुझे दिखाता है।।

वफा के नाम पे करता दगा अगर कोई
जहाँ में खुद का ही वह कब्र खोद जाता है।।

करम खुदा का हमें क्यों समझ नहीं आता
कभी हमे वो रुलाता कभी हँसाता है।।

फरेब दिल में हमेशा भरा हुआ जिसके
सफ़ेद पोश बना राह वो दिखाता है ।।

खुदा है एक सहारा ज़माने वालों का
मगर हमें वो मुसीबत में याद आता है।।

जुबा पे फूल मगर खार दिल में है जिसके
सुना वो अम्न का झंडा बड़ा उठाता है।।

कभी अगर कोई मजबूरियो में फस जाये
जहाँ पे सर हो उठाना वहीँ झुकाता है।।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 18, 2016 at 10:57am
आदरणीय सुरेंद्र नाथ कुशक्षत्रप साहब सुन्दर रचना है । बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by नाथ सोनांचली on October 18, 2016 at 4:16am
जनाब समर कबीर साहब आपको प्रणाम! आपका सुझाव उत्तम है। यूँही आशीष देते रहें। हम जैसे के लिए संजीवनी है।
Comment by Samar kabeer on October 17, 2016 at 9:26pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
चौथे शैर में "क़ब्र" स्त्रीलिंग है इसलिये सानी मिसरे में 'ख़ुद का'की जगह "ख़ुद की" कर लें ।
आठवें शैर में 'जुबा' को ",ज़ुबाँ" कर लें ।
Comment by नाथ सोनांचली on October 17, 2016 at 2:25pm
आदरणीय रवि शुक्ल जी सादर प्रणाम, आपका ह्रदय से आभार सर
Comment by Ravi Shukla on October 17, 2016 at 1:44pm

आदरणीय सुरेन्‍द्र जी  बढि़या गजल हुई है बधाई स्‍वीकार करें आप इसी तरह गजल पर अभ्‍यास करते रहें आपसे बहुत उम्‍मीदें है 

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