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ग़ज़ल - जिंदगी है ढ़लान पर भाई

2122 1212 22
आज मुद्दा ज़ुबान पर भाई ।
गोलियां क्यूँ जवान पर भाई ।।

उठ रहीं बेहिसाब उँगली क्यूँ ।
इस लचीली कमान पर भाई ।।

कुछ वफादार हैं अदावत के।
तेरे अपने मकान पर भाई।।

बाल बाका न हो सका उनका।
खूब चर्चा उफान पर भाई ।।

मरमिटे हम भी तेरी छाती पर।
चोट खाया गुमान पर भाई ।।

बिक रही दहशतें हिमाक़त में ।
उस की छोटी दुकान पर भाई ।।

गीदड़ो का फसल पे हमला है ।
बैठ ऊँचे मचान पर भाई ।।

यार देता हुनर उसे जंगी ।
क्या मिला है उड़ान पर भाई ।।

प्याज बिक जाएगी अठन्नी में ।
जुल्म कैसा किसान पर भाई ।।

मजहबी कत्ल भी इबादत है ?
दिख गया कब कुरान पर भाई ।।

कुछ हकीकत से वास्ता रख लो ।
जिंदगी है ढलान पर भाई ।।

-नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on September 28, 2016 at 11:11am
आ0 प्रमोद साहब सादर आभार
Comment by PRAMOD SRIVASTAVA on September 27, 2016 at 9:10pm

जिंदगी है ढलान पर भाई। बहुत खूब ।बधाई हो ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on September 27, 2016 at 7:27pm
आ0 कबीर साहब सादर आभार के साथ सादर नमन ।
Comment by Samar kabeer on September 27, 2016 at 3:05pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
ग़ज़ल सिर्फ़ बह्र में होने से बात नहीं बनती,बयान भी मजबूत होना चाहिये, अल्फ़ाज़ की बंदिश भी ,ज़रूरी होती है,और ये सब चीजें अध्यन करने से आती हैं,कृपया इस और भी ध्यान दें ।

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