For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फ़इलातु फ़ाइलातुन फ़इलातु फ़ाइलातुन

है यही मिशन हमारा कि हराम तक न पहुँचे
कोई मैकदे न जाए कोई जाम तक न पहुँचे

थे ख़ुदा परस्त जितने,वो ख़ुदा से दूर भागे
जो थे राम के पुजारी,कभी राम तक न पहुँचे

ज़रा सीखिये सलीक़ा,नहीं खेल क़ाफ़िए का
वो ग़ज़ल भी क्या ग़ज़ल है जो कलाम तक न पहुँचे

लिखो तज़किरा वफ़ा का तो उन्हें भी याद रखना
वो सितम ज़दा मुसाफ़िर जो मक़ाम तक न पहुँचे

लिया नाम तक न उसका,ए "समर" यही सबब था
मिरी आशिक़ी के क़िस्से रह-ए-आम तक न पहुँचे

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 978

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on December 26, 2016 at 11:33pm
जनाब नवीन जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Samar kabeer on December 26, 2016 at 11:32pm
जनाब रोहिताश्व मिश्रा जी आदाब,बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2016 at 11:31pm
वाह्ह्ह्ह्ह्ह् आ0 कबीर सर बहुत खूबसूरत ग़ज़ल । हार्दिक बधाई ।
Comment by रोहिताश्व मिश्रा on December 21, 2016 at 8:44pm
वाह समर Bhai Ji
Comment by Samar kabeer on September 15, 2016 at 10:50pm

इसे कहते हैं सुख़न फहमी,फ़न की दाद देना भी कोई आपसे सीखे,आप का हुक़्म सर आँखों पर हुज़ूर-वाला ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 7:43pm

//फ़िलबदीह कहने का कारण ये है कि तरही मुशायरे के अंतिम चरण में ये ग़ज़ल हुई,इसलिये कह दिया //

अब से ख़बरदार साहब, कभी जो आपने इत्मिनान से ग़ज़लग़ोई की ! आप ऐसे ही फ़िलबदीह करते रहें और हमें मुतस्सिर करते रहें.  

शुभ-शुभ

Comment by Samar kabeer on September 15, 2016 at 7:34pm
जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई,आपकी दाद पाकर मुग्ध हूँ,और हौसला चार गुना बढ़ गया है,आपकी दाद-ओ-तहसीन और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
"थे ख़ुदा परस्त जितने वो ख़ुदा से दूर भागे"
जो थे राम के पुजारी कभी राम तक न पहुंचे"
ये शैर में आपकी नज़्र करता हूँ ।
फ़िलबदीह कहने का कारण ये है कि तरही मुशायरे के अंतिम चरण में ये ग़ज़ल हुई,इसलिये कह दिया । आपकी सराहना के लिये पुनः धन्यवाद ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 6:37pm

आदरणीय समर साहब ! जय हो.. ! आपकी ग़ज़ल पर बस इतना ही कहना मुनासिब होगा, उस्तादों की कही ग़ज़लों से ग़ज़लें सीखी जाती हैं. उन पर तब्सिरा नहीं किया जाता.

  
सही कहा आपने साहब ! --
ज़रा सीखिये सलीक़ा,नहीं खेल क़ाफ़िए का
वो ग़ज़ल भी क्या ग़ज़ल है जो कलाम तक न पहुँचे

 

निर्दोष पंक्तियों और मानीख़ेज़ अश’आर से धनी इस ग़ज़ल को आप जाने क्यों इसे फिल्बदी ग़ज़ल कह रहे हैं.
सलाम सलाम सलाम !

 

और, हुज़ूर, काश ये शेर मेरा होता -
थे ख़ुदा परस्त जितने,वो ख़ुदा से दूर भागे
जो थे राम के पुजारी,कभी राम तक न पहुँचे

 

इस ग़ज़ल के हवाले से हम इस सिम्फ़ के कुछ और जानकार हुए.
शुभ-शुभ

Comment by Samar kabeer on September 15, 2016 at 5:58pm
मोहतरमा अल्का जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये बहुत शुक्रिया ।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 5:47pm

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह .......आदरणीय सर बहुत सुन्दर और  प्रभावशाली ग़ज़ल । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
13 minutes ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
6 hours ago
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
6 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service