For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नेपाल यात्रा - यादों के झरोखे से (संस्मरण)

यह 1980-81 की बात है । मैं दसवी क्लास में थी । स्कूल का आखरी टूर था । पता चला कि नेपाल जाना था । स्कूल के टूर साल में दो बार होते थे गर्मी और विंटर की छुट्टियों में । दिसम्बर में जाना तय हुआ था । प्रिंसिपल सर ने घोषणा की कि दिल्ली , आगरा , पटना , गया से समस्तीपुर होते हुए नेपाल जाना होगा । हम क्लास में आपस में बाते करने लगे थे । अपने अपने मनसूबों के साथ हम में एक उत्साह था । यह स्कूल का आखरी टूर था । हम सब जल्द ही बिछड़ने वाले थे । मेरे मन में था मैं भी जाऊं । पर कैसे ?? एक नोटिस मिलता था । उसे लेकर घर गयी । हमारी माली हालात साधारण ही थी । सो हिम्मत नहीं हुई की माँ से कुछ कहूँ ।


किस्मत की बात रही कि एक परिवार है जिसके मुखिया और उनकी पत्नी जो मेरे नानाजी के दोस्त थे उनके कोई संतान न थी । वे अक्सर नानाजी से मिलने आते थे । जाने क्या सूज़ा नानाजी को की उन्होंने मेरी माँ जो की सवा महिने की हुई ही थी उनके लिए नानाजी बोले यह लो यह आज से तुम्हारी बेटी है । यकिन मानिए तब से अब तक उस परिवार से प्यार ही मिला है । माँ की पूरी ज़िमनेदारी उन्होंने उठाई । माँ की शादी में भी उनका बराबर का साथ रहा । मेरा जन्म भी उन्हीके बीच हुआ । बचपन से ही मुझसे यह कहा गया कि यह नानाजी है । वे कच्छी परिवार से थे । सब उनको भा कहकर बुलाते थे । मैं भी उनको भा नाना बुलाती थी । मुझसे बहुत प्यार था उनको । हर इतवार को हम बच्चों को घुमाने ले जाते थे । नाना जी बहुत ध्यान रखते थे । हाँ उनसे कभी माँगा नहीं कुछ पर वे सच में हर छोटी बड़ी बात को समझ लेते थे । शाम को स्कूल से जब मैं घर गयी रोज़ की तरह हम दोनों ने साथ में नाश्ता किया । उनकी आदत थी वे मुझसे रोज़ पूछते थे स्कूल में क्या क्या हुआ । मैं भी अपनी दिनचर्या उनको सुनाती थी । मैं कुछ न बोली टूर के बारे में । जब स्कूल से मुझे पता चला कि जाने वालों की लिस्ट में मेरा भी नाम है । मैं चोंक गयी क्योकि माँ ने तो मना कर दिया था । पर मन में खुश भी थी । घर गयी तो पता चला था की भा नानाजी ने पैसे जमा करवा दिए थे ।
टूर के लिए कपड़ों की बारी आई तो उस दौरान रंगीन बेल बॉटम का फैशन था और स्लेक्स चलते थे इनके साथ कुछ टी शर्ट्स ख़रीदे । उसी परिवार के अन्य बच्चे भी मेरे साथ उसी स्कूल में पढ़ते थे । हम सभी अपनी अपनी तैयारियों में लग गए । उस दौरान हम एक दूसरे की ड्रेस्सेस भी पहन लेते थे । सो सब बहनो ने अलग अलग टाइप ऑफ़ ड्रेस्सेस लिए । वो दिन आखिर आ ही गया । हम सब ट्रेन में बैठे । शायद रात 8 30 के आस पास की ट्रेन थी । जो इगतपुरी होते हुए देल्ही जाने वाली थी । रास्ता इतना याद नहीं पर ब्रेक जर्नी थी शायद । कहीं से हमारी बोगी किसी और ट्रेन से जुड़नी थी । करीब 100 बच्चे थे । 15 से 20 टीचर्स थी । स्टाफ था । हमारे प्रिंसिपल सर का आखरी साल था वे रिटायर होने वाले थे । हम बच्चों की ज़िद्द थी की इस टूर में उनकी पत्नी जिनको हम काकी कहते थे उनको भी साथ चलना होगा । पहले तो वे खूब खफ़ा हुई पर तैयार हो ही गयी। हम सब ट्रेन में मस्ती करते हुए गाते नाचते हुए जा रहे थे ।शायद 2 बजे के आस पास हम सबको प्रिंसिपल सर ने डाँट कर सोने के लिए कहा । हम सब अज्ञाकारियों की तरह अपनी अपनी बर्थ पर सो गए । हाँ याद आया बर्थ के बीच में लकड़ी के पटिये लगाये हुए थे एक्स्ट्रा बर्थ के लिए । एक पूरी बॉगी हमारी थी । बीच बीच में पटियों पर एक एक बच्चा एडजस्ट हो गया था ।


दूसरे दिन सवेरे उठे तो पाया की बॉगी उस ट्रेन से अलग हो कहीं खड़ी हुई थी जहाँ से दूसरी ट्रेन से उसे जुड़ना था । पर यह क्या ! चिल्ला चोट शुरू हो गयी थी । अटेचियां गायब थी ।बहुत सारी ,हम में से कईयों का सामान चोरी हो गया था । प्रिंसिपल सर की वाइफ का भी। आग बाबुला हो रही थी वे । बच्चे भी रोने लगे । चोरी की रिपोर्ट लिखवाई गयी । बहुतों के तो पैसे भी अटेचियों में थे वे भी गए । खैर टूर चलता रहा । रोते हुए हम दिल्ली पहुंचे ।वहाँ सब से पहले हमारी टीचर्स ने हमें कपड़े दिलवाये । पता चला की उनके पास हमारे घर वालों ने पैसे भेजें है । थोडा उत्साह बढ़ा ।देल्ही में मार्केटिंग के बाद हमने वहां का बिरला मन्दिर देखा । उसी दौरान क़ुतुब मीनार , अमर ज्योति , शान्ति वन ,लाल किल्ला ,आदि देखा । फिर आगरा गए वहाँ ताज महल देखने को मिला । अद्भुत नक्काशी और मीनारों की बनावट देखी । उस दौरान रात के वक़्त लाइट शो हुआ करता था सो रात को वो भी दिखाया गया । कुछ ऐसा याद आता है काकी वहां गिर पड़ी थी । रात को ताज महल के बाहर जो फ़व्वारे हैं उसमें । वे पहले से ही गुस्सा थी और गुस्सा हो गयी । हम सब बच्चे हंसने लगे पर टीचर्स ने हमें डांटा तो मुश्किल से अपनी हंसी रोक पाये । उनका इलाज करवाया गया । चोट तो लगी थी । उनके दर्द को जब मेहसूस किया तब बहुत बुरा लगा और हम में से कईयों ने उनसे माफ़ी मांगी । उनकी खूब सेवा की । उनको हम सब से बहुत प्यार था । उनके भी कोई संतान न थी सो स्कूल के बच्चों से उन्हें बेतहाशा मोहब्बत थी । आगरा के मार्केट से मेरा दिल हुआ की एक छोटा सा ताज महल खरीदूँ । वहां एक जगह एक लकड़ी की केबिन में एक बड़ा ही खूबसूरत ताज महल देखा । उसकी किमत देखकर हम सभी हँसने लगे । उसपर प्राइस टैग लगा था रुपीस 99000 ओनली । वहां से फिर मैंने कुछ कीचेन्स खरीदी और एक पेपर वेइट ख़रीदा जिसमे ताज महल बना हुआ था ।


आगरा के बाद हम पटना गए वहा बौद्ध मन्दिर देखे नालंदा यूनिवर्सिटी देखि । अपने आप में एक मिसाल थी उसकी बनावट । वहां से आगे एक जैन मन्दिर भी है एक्सक्ट जगह याद नहीं पर पहाड़ी से ऊपर चढ़कर गए थे । फिर हम गया जी गए ।बोध गया के मन्दिर में । असीम शांति थी वहां । आज भी याद है । खुली जगह में यह बौद्ध मन्दिर । जगह जगह पेड़ों के नीचे बैठकर लोग ध्यान मुद्रा में बैठे हुए थे । छोटे छोटे वन प्राणी दिखे थे । हिरण ,खरगोश इत्यादि । बड़ा अच्छा लगा था वहां घूमना ।


वहां से शायद हम बस से समस्तीपुर गए थे । फिर वहां से तांगे किये गए थे । हमको टीचर्स ने सिखाया था की कोई चेक्किंग वाला कुछ पूछे तो जवाब मत देना कह देना हमारी टीचर्स से पूछो । हम पहली बार अपने देश की सीमा पार कर रहे थे । रास्ते में पुलिस और जवानों की टुकड़ियों को देखकर डर भी रहे थे । हम सब इतने थक चुके थे की तांगे में भी सो गए । हमें टीचर्स ने जगाया यह कहकर उठो नेपाल आ गया है । वहां की ठण्डी हवा जैसे ही लगी हम काम्पने लगे और अपने अपने हाथ मसलने लगे ।होटल में जल्दी से सामान शिफ्ट हुआ । मेरा रूम जहाँ था उसकी खिड़की से कंचनजंगा और एवेरेस्ट की चोटियाँ दिख रही थी ।बर्फीली पहाड़ियों को देख मुझे बहुत ख़ुशी होती थी । नेपाल भी घुमे वहां के कुछ बौद्ध मन्दिर ,वहां का मार्किट । हाँ उस दौरान अपने 100 रुपये के अगेंस्ट उनके 121 रुपये मिलते थे । ठण्ड बहुत ज्यादा थी और glaciers पिघलने की सुचना वहां के लोगों ने दी थी सो हम पहाड़ो पर तो नहीं जा सके । पर यह टूर अविस्मरणीय बन गया ।


लौटने में हम फिर समस्तीपुर तक तांगे में आये और उसके बाद देल्ही होते हुए फिर मुम्बई पहुंचे ।मुम्बई तक भी काकी नाराज़ ही रही ।बहुत दिनों तक वे स्कूल नहीं आयीं ।उनका घर स्कूल के करीब ही था । मैं कुछ साथियों के साथ उनके घर उनकी तबियत देखने गयी थी । वहां उन्होंने हम सबको नाश्ता करवाया और हम सबने उनसे खूब माफ़ी मांगी । उन्होंने हम सबको गले से लगाया । उनका वात्सल्य आज भी अपने करीब मेहसूस होता है । 1981 में 10 वीं क्लास की परीक्षा के बाद स्कूल को अलविदा करना पड़ा पर स्कूल की कईं यादें आज भी ताज़ा है ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 775

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 25, 2016 at 7:30pm
धन्यवाद जनाब समर कबीर साहब ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 25, 2016 at 7:30pm
धन्यवाद आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ।
Comment by Samar kabeer on August 25, 2016 at 6:13pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,अच्छे लगे आपके माज़ी के दिन और बातें,हमे भी वो ज़माना याद आगया, बधाई आपको इस प्रस्तुति के लिये ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 5:40pm

आदरणीया कल्पना जी , अच्छा लगा आपका संस्मरण पढ़ के , 19- 20 हम सब ऐसे ही बड़े हुये हैं , तंगी में ! आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 25, 2016 at 4:00pm
धन्यवाद आदरणीया नीता दी ।
Comment by Nita Kasar on August 25, 2016 at 3:45pm
स्कूल के संस्मरण हमारे स्मृति पटल पर अंकित रहते है सदा ही।हम भूल नही पाते है ।ये यादें हमें हमेशा तरोताज़ा रखती है ।बधाई आपके लिये आद०कल्पना जी ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 25, 2016 at 2:16pm
सादर धन्यवाद आदरणीया राहिला जी ।
Comment by Rahila on August 25, 2016 at 1:50pm
यादों के झरोखे से निकली ठंडी बयार सा संस्मरण,बहुत सुंदर आदरणीया दीदी!सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 25, 2016 at 1:30pm
धन्यवाद् आदरणीय सर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service