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आया सुखमय बसन्त-चौपाई छंद

आया सुखमय बसंत आया।
अंग-उमंग तरंगहि लाया।।
राग-रंग का ऋतु है भैया।
नाचे तन-मन ता ता थैया।।
नव पल्लव तरुओं पर आये।
पछुआ गुन-गुन गीत सुनाये।।
आम्रकुंज फूले बौराये।
सुरभित वात हृदय महकाए।।
सरसों के सुम पीले-पीले।
पीताम्बर-से भू पर फैले।।
सजी धरा-वधु हिय पुलकाए।
पीत वसन ज्यों तन पर छाए।।
पशु-पक्षी सब नाचे गायें।
कोयल नित नव राग सुनाये।।
मोर-मोरनी विहरें वन में।
नाचे-झूमें हरखें मन में।।
स्वच्छ गगन दिनकर ले आये।
चारो ओर कुसुम भरि आये।।
तितली फूलों पर मँडराएं।
मधुप सुधा पी-पी इतराएं।।
रजनी में रजनीकर आये।
स्वच्छ छटा भू पर बिखराये।।
चम्पा-जूही दिक महकाएं।
विरही मन में रति भड़काएं।।
सखियाँ सजि-धजि नाचे गायें।
निज प्रियतम सँग रास रचाएं।।
स्नेह डोर धर मैं भी झूमूँ।
मन-मधु ले वन-उपवन घूमूँ।।

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by रामबली गुप्ता on March 29, 2016 at 12:42pm
बहुत बहुत आभार आदरेया कांता जी बसंत गान पसंद करने के लिए
Comment by kanta roy on March 29, 2016 at 12:02pm

सखियाँ सजि-धजि नाचे गायें।
निज प्रियतम सँग रास रचाएं।।
स्नेह डोर धर मैं भी झूमूँ।
मन-मधु ले वन-उपवन घूमूँ।।-----वाह  !  अति  सुन्दर  है  ये  भी  आपका  बसंत - गान ,भावों का प्रवाह  मन  में  पढ़ते  हुए  बसत जगा  जाता  है  . बधाई  आपको  आदरणीय  रामबली  जी  इस  सार्थक सृजन  के  लिए  

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