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मत पूछ  किस लिए  वो तेवर बदल रहे हैं
शह पा के  दोस्तों  की  दुश्मन उछल रहे हैं  l1l

होगी वफा वतन  से यारो  भला कहाँ अब
हुंकार  जाफरों   की   शासन   दहल  रहे हैं l2l

हमको पता  है  लोगों  शैलाब बढ़ रहा क्यों
दरिया के प्यार में कुछ पत्थर पिघल रहे हैं l3l

आँखों को सबकी यारों चुँधिया न दें कहीं वो
तम  के   दयार  में  से  तारे  निकल  रहे हैं l4l

ताकत विरोध की तज अपनायी बेबसी क्यों
क्यों  खून  की  जगह  पर आँसू उबल रहे हैं l5l

शासन न राम सा अब रावण की पैरवी बस
मत   जाओ  रात  बाहर  गुंडे  टहल  रहे हैं l6l
************************************
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 15, 2016 at 11:41am

आ० भाई नरेंद्र जी ग़ज़ल के अनुमोदन के लिए आभार l

Comment by TEJ VEER SINGH on March 14, 2016 at 7:38pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी जी! बेहतरीन गज़ल!

मत पूछ  किस लिए  वो तेवर बदल रहे हैं
शह पा के  दोस्तों  की  दुश्मन उछल रहे हैं

Comment by Samar kabeer on March 14, 2016 at 6:13pm
जनाब लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर'जी आदाब,बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
दूसरे शैर का सानी मिसरा कुछ और समय चाहता है, तीसरे शैर के ऊला मिसरे में "शैलाब"को "सैलाब"कर लें ।
Comment by narendrasinh chauhan on March 14, 2016 at 5:13pm

लाजवाब रचना , हार्दिक बधाई

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