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पहन पोशाक गांधी की - ग़ज़ल ( लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ )

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जिसे  राणा सा  होना था  वो  जाफर बन गया यारो
सियासत  करके  गड्ढा भी  समंदर बन गया यारो ।1।

हमारी  सीख कच्ची  थी  या उसका रक्त ऐसा था
पढ़ाया  पाठ  गौतम  का सिकंदर  बन गया यारो ।2।

करप्सन  और  आरक्षण  का  रूतबा   देखिए ऐसा
फिसड्डी था जो कक्षा में वो अफसर बन गया यारो ।3।

तरक्की  है कि  बर्बादी  जरा  सोचो नए  युग की
जहाँ बहती नदी  थी इक वहाँ घर बन गया यारो ।4।

फिरंगी तो गए घर से  मगर पहना के फितरत यूँ
पहन  पोशाक  गांधी की  वो  डायर बन गया यारो ।5।

********************
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
 

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2016 at 11:43am

आ0 भाई जयनित जी गजल का मान बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2016 at 11:42am

आ0 भाई श्यामनरायन जी उपस्थिति व प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by जयनित कुमार मेहता on March 19, 2016 at 9:39pm
आदरणीय लक्ष्मण जी, बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने। तीसरा शेर तो ग़ज़ब का हुआ है।
Comment by Shyam Narain Verma on March 18, 2016 at 5:41pm
सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई  
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2016 at 1:00pm

आ० भाई पंकज जी हार्दिक आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2016 at 12:59pm

आ0 भाई रवि जी उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2016 at 12:59pm

आ० भाई तेजवीर जी हार्दिक आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2016 at 12:58pm

आ० भाई केवल प्रसाद जी स्नेह व सलाह के लिए आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2016 at 12:57pm

आ० भाई समर जी अपनी उपस्थिति से ग़ज़ल का मान बढ़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2016 at 12:55pm

 आ0 भाई राहुल जी बहुत बहुत धन्यवाद ।

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