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गज़ल -अगर ग़लत है जहाँ में कोई, तो वो मैं हूँ --- गिरिराज भंडारी

1212  1122  1212  22/112

छिपा के बाहों में रक्खा था तीरगी ने मुझे

नज़र उठा के भी देखा न रोशनी ने मुझे

 

थका थका सा बदन है झुके झुके शाने

परीशाँ कर दिया इस दौरे ज़िन्दगी ने मुझे

 

गली से उनकी जो निकला तभी जहाँ का हुआ  

उसी गली में ही रक्खा था आशिक़ी ने मुझे

नज़र में रूह की सच्चाइयाँ पढ़ूँ कैसे

सिखा दिया है वही इल्म, बेबसी ने मुझें

 

रही तो चाह मेरी भी, तेरे क़रीब आता

तुझी से कर दिया है दूर खस्तगी ने मुझे

 

अगर ग़लत है जहाँ में कोई, तो वो मैं हूँ

यही वो सोच है , जो दी है बन्दगी ने मुझे

***************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

Views: 576

Comment

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Comment by Samar kabeer on March 4, 2016 at 6:10pm
तीसरे शैर का सानी मिसरा इस तरह कर लें:-
"उसी गली में ही रक्खा था आशिक़ी ने मुझे"
Comment by TEJ VEER SINGH on March 4, 2016 at 5:33pm

 हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी! बेहतरीन गज़ल!

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 4, 2016 at 12:39pm

वाह आदरणीय बहुत ही खूबसूरत 

Comment by Samar kabeer on March 3, 2016 at 9:48pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,वाह वाह बहुत ख़ूब मुरस्सा ग़ज़ल कही आपने शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
दूसरे शैर के ऊला मिसरे में"झुके झुके शाने"कर लें तो शैर और खूबसूरत हो जायेगा ।
तीसरे शैर का सानी मिसरा लय में नहीं लगता ?देखियेगा ।
Comment by Shyam Narain Verma on March 3, 2016 at 6:23pm
बहुत खूब , पूरी ग़ज़ल बहुत उम्दा है , बहुत बहुत बधाई, सादर ,

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