For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दुकानदारी (लघुकथा ) जानकी बिष्ट वाही

" रॉय जी ! मुझे नायर जी ने बताया कि आप भी शिक्षा के क्षेत्र में बिजनेस करना चाहते हैं।"
 " जी हाँ, आप से इसी बारे में बात करनी है।आप दो- दो इंजिनियरिंग कॉलेज और एक मेडिकल कॉलेज चला रहे हैं।आपको काफी अनुभव होगा।"
 " रॉय जी ! इंजीनियरिंग कॉलेज खोलना अब घाटे का सौदा है।मेरे ही दोनों कॉलेज में इस साल दो हज़ार सीटें खाली हैं ।समझ नहीं आ रहा लोगों को अब क्या हो गया।पहले तो हर माँ -बाप अपने बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते थे। " गुप्ता जी ने दीवार पर लगे गांधी जी की तस्वीर पर एक नज़र डालते हुए कहा।
 " ओह... तो मेडिकल कॉलेज कैसा रहेगा ?"
 " देखिये रॉय जी ! मेडिकल कॉलेज खोलना बहुत महंगा है। हाँ अगर खोल लिया तो चाँदी क्या सोना काटेंगें।"
 " अब ज्यादा न सोचिये रॉय साहब! शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण ने तो हम लोगों के दोनों हाथों में लड्डू थमा दिए हैं ।हम बिजनेसमैन हैं।अगर हम ये मानवता और नैतिकता के बारे में सोचेंगे तो खायेंगें क्या ? " एक आँख दबाते हुए नायर जी ने कहा।और ये सुनते ही एक समवेत ठहाका कमरे में गूँज उठा।
 " अरे कुछ टूटा क्या ? कुछ चटकने की आवाज़ आई।" नायर जी ने इधर-उधर देखते हुए कहा।
 " नहीं कुछ भी तो नहीं ।"गुप्ता जी बोले।
 किसी की नज़र गाँधी जी की तस्वीर के चटके हुए शीशे पर नहीं पड़ी।


मौलिक एवम् अप्रकाशित

Views: 510

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Janki wahie on February 12, 2016 at 4:51pm
सादर आभार आ.रवि सर जी ।कथा पर समीक्षात्मक टिप्पणी कर मार्ग दर्शन करने हेतु। आपकी बात सिर आँखों पर ।नमन
Comment by Ravi Prabhakar on February 11, 2016 at 7:17pm

आदरणीय जानकी जी, /हम बिजनेसमैन हैं।अगर हम ये मानवता और नैतिकता के बारे में सोचेंगे तो खायेंगें क्या ?/  कथा को ये पंक्‍ित बहुत कमजोर बना रही है। वार्तालाप से जाहिर हो रहा है कि दोनो महानुभाव अपने व्‍यक्‍ितगत लाभ के विषय में ही बात कर रहे हैं और उन्‍हे मानवता अथवा नैतिकता से कुछ लेना देना नहीं है।  कथा में गांधी जी की तस्‍वीर के शीशे का चटकना भी कथा में संश्‍िलष्‍टता ला रहा है। इस कमजोर कथा पर कुछ और परिश्रम करने की आवश्‍यकता थी । सादर

Comment by Samar kabeer on February 11, 2016 at 5:51pm
मोहतरमा जानकी जी आदाब,इस प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें !
Comment by Nita Kasar on February 11, 2016 at 12:58pm
शिक्षा का क्षेत्र कमाऊ बिज़नेस हो गया है आजकल ।नैतिकता की परवाह इन्है कहाँ है।सारथक कथा के लिये बधाई ।आद०जानकी वाही जी ।
Comment by Amit Tripathi Azaad on February 11, 2016 at 11:02am

हार्दिक आभार आदरणीय  मिथलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 11, 2016 at 1:39am

आदरणीया जानकी जी इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Janki wahie on February 10, 2016 at 8:54pm
शुक्रिया प्रिय राहिला त्वरित सार्थक टिप्पणी कर हौसला अफ़जाई के लिए ।कथा पर आपकी उपस्थिति से कथा को चार चाँद लग जाते हैं।पुनः हार्दिक आभार।
Comment by Rahila on February 10, 2016 at 5:04pm
शानदार पंच...बहुत बढ़िया शिल्प से सजी।और नैतिकता के पतन को उजागर करती बेहतरीन रचना । बहुत बधाई प्रिय जानकी दी!सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service