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#गजल#
2212 2212 2212
कटते सिपाही ढ़ह रही कब भीत है?
बस फातिहा पढ़ना यहाँ की रीत है।1

शर्मोहया रख ताक पर ,तूने कहा-
कटते सिपाही,बात तेरी नीत है।2

बगुला बना चलता चकाचक तू हुआ
गाता रहा रे बस पुराना गीत है।3

तू मछलियाँ लपका किया बस बेधड़क
जीता किसीने कह रहा निज जीत है।4

बँटता रहा घर -बार है तेरी दुआ
रे दुखहरण! तुझसे समां भयभीत है।5

हमने जहाँ परसे दही काँटा चुभा,
रे भाल तेरा हो गया अब पीत है।6

है फेंकता खंजर पड़ोसी दूर से
लगता तुझे बैरी बहुत मनमीत है।7

मन का अँधेरा तो मरा अब जा रहा
लगता निशा काली गयी अब बीत है।8

कितना छलेगा अब बता झूठे सनम!
है फट रही कबसे लगी जो प्रीत है।9
मौलिक व अप्रकाशित@

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Comment by Gurpreet Singh jammu on May 10, 2017 at 8:58am
मैं भी आपका शुक्रिया अदा करता हूँ आदरणीय मनन जी.. आपकी ग़ज़ल के माध्यम से नई बात पता चली
Comment by Manan Kumar singh on May 10, 2017 at 8:31am
आदरणीय सुधी व गुणी जनों के इंगित करने से विस्मृत हुई त्रुटि का निराकरण हुआ।मैं दिली तौर पर अनुगृहीत हूँ, आदरणीय समर जी,गुरप्रीत जी,सादर।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 9, 2017 at 9:08am
आदरणीय समर कबीर जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया.... खुशकिस्मत हूँ कि आप से, इस मंच से जुड़ा हुआ हूँ
Comment by Samar kabeer on May 8, 2017 at 10:27pm
आपने सही समझा है ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 8, 2017 at 7:49pm
आदरणीय समर कबीर जी आपने अपना वक्त देकर अपनी टिप्पणी देकर मुझे समझया इसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया..लेकिन क्या करूँ मुझे समझने में समय लग जाता है..
कुल मिलाकर ये समझा हूँ कि अगर तो काफीआ किसी मात्रा से समाप्त हो रहा है तो काफ़िये में उस मात्रा से पहले अलग अलग अक्षर लिए जा सकते हैं जैसे (सोचा, मीठा, जैसा में च,ठ,स आदि) या (रही, गई, भरी आदि)... लेकिन अगर काफीआ बिना मात्रा के समाप्त ही रहा है तो वहाँ अंतिम अक्षर अलग अलग लेना नहीं चलेगा वहाँ काफ़िये का अंतिम अक्षर एक ही रहेगा जैसे (गीत, मीत, रीत आदि में त)..... मैं क्योंकि खुद एक ग़ज़ल लिख रहा था जिस में मैने ऐसा ही कफीआ (फ़र्ज़, पर्त,अर्क, सख्त आदि) लिया था...लेकिन अब तो वो काफीआ दोष के आधार पर मान्य नही रह जाएगी..
माफ़ी चहता हूँ आपको दोबारा तक्लीफ दे रहा हूँ सर लेकिन बताइएगा क्या मैं सही समझ पाया हूँ सर जी... शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on May 8, 2017 at 6:22pm
जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,मामूली सी बात है,आप ग़ज़ल ध्यान से पढेंगे तो ख़ुद समझ लेंगे,'पीठ' के साथ 'ढीठ'क़ाफ़िया तो ठीक होता लेकिन 'रीत'कैसे चलेगा 'ठ'के साथ 'त'कैसे चलेगा ?सोचियेगा ।
Comment by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 5:49pm
आदरणीय, मैं भी विद्यार्थी ही हूँ।परिमार्जन करना था,शुक्रगुजार हूं कि आपने इंगित किया,सादर।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 8, 2017 at 4:50pm

आदरणीय मनन जी ,, मैं तो ग़ज़ल का विद्यार्थी हूँ,, यहां बस काफिआ दोष के बारे में जानना चाहता था 

Comment by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 4:12pm
आदरणीय, इस ग़ज़ल में परिमार्जन होना है;वह करूँगा मैं।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 8, 2017 at 3:41pm

अच्छी ग़ज़ल है आदरणीय मनन कुमार जी,,, काफी के बारे में गुणीजनों से मार्ग दर्शन  चाहता हूँ की यहां पर काफिआ क्यों गलत है,,, क्या  "अ " काफिआ नहीं लिया जा सकता 

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