For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

#गजल#
2212 2212 2212
कटते सिपाही ढ़ह रही कब भीत है?
बस फातिहा पढ़ना यहाँ की रीत है।1

शर्मोहया रख ताक पर ,तूने कहा-
कटते सिपाही,बात तेरी नीत है।2

बगुला बना चलता चकाचक तू हुआ
गाता रहा रे बस पुराना गीत है।3

तू मछलियाँ लपका किया बस बेधड़क
जीता किसीने कह रहा निज जीत है।4

बँटता रहा घर -बार है तेरी दुआ
रे दुखहरण! तुझसे समां भयभीत है।5

हमने जहाँ परसे दही काँटा चुभा,
रे भाल तेरा हो गया अब पीत है।6

है फेंकता खंजर पड़ोसी दूर से
लगता तुझे बैरी बहुत मनमीत है।7

मन का अँधेरा तो मरा अब जा रहा
लगता निशा काली गयी अब बीत है।8

कितना छलेगा अब बता झूठे सनम!
है फट रही कबसे लगी जो प्रीत है।9
मौलिक व अप्रकाशित@

Views: 929

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Gurpreet Singh jammu on May 10, 2017 at 8:58am
मैं भी आपका शुक्रिया अदा करता हूँ आदरणीय मनन जी.. आपकी ग़ज़ल के माध्यम से नई बात पता चली
Comment by Manan Kumar singh on May 10, 2017 at 8:31am
आदरणीय सुधी व गुणी जनों के इंगित करने से विस्मृत हुई त्रुटि का निराकरण हुआ।मैं दिली तौर पर अनुगृहीत हूँ, आदरणीय समर जी,गुरप्रीत जी,सादर।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 9, 2017 at 9:08am
आदरणीय समर कबीर जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया.... खुशकिस्मत हूँ कि आप से, इस मंच से जुड़ा हुआ हूँ
Comment by Samar kabeer on May 8, 2017 at 10:27pm
आपने सही समझा है ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 8, 2017 at 7:49pm
आदरणीय समर कबीर जी आपने अपना वक्त देकर अपनी टिप्पणी देकर मुझे समझया इसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया..लेकिन क्या करूँ मुझे समझने में समय लग जाता है..
कुल मिलाकर ये समझा हूँ कि अगर तो काफीआ किसी मात्रा से समाप्त हो रहा है तो काफ़िये में उस मात्रा से पहले अलग अलग अक्षर लिए जा सकते हैं जैसे (सोचा, मीठा, जैसा में च,ठ,स आदि) या (रही, गई, भरी आदि)... लेकिन अगर काफीआ बिना मात्रा के समाप्त ही रहा है तो वहाँ अंतिम अक्षर अलग अलग लेना नहीं चलेगा वहाँ काफ़िये का अंतिम अक्षर एक ही रहेगा जैसे (गीत, मीत, रीत आदि में त)..... मैं क्योंकि खुद एक ग़ज़ल लिख रहा था जिस में मैने ऐसा ही कफीआ (फ़र्ज़, पर्त,अर्क, सख्त आदि) लिया था...लेकिन अब तो वो काफीआ दोष के आधार पर मान्य नही रह जाएगी..
माफ़ी चहता हूँ आपको दोबारा तक्लीफ दे रहा हूँ सर लेकिन बताइएगा क्या मैं सही समझ पाया हूँ सर जी... शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on May 8, 2017 at 6:22pm
जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,मामूली सी बात है,आप ग़ज़ल ध्यान से पढेंगे तो ख़ुद समझ लेंगे,'पीठ' के साथ 'ढीठ'क़ाफ़िया तो ठीक होता लेकिन 'रीत'कैसे चलेगा 'ठ'के साथ 'त'कैसे चलेगा ?सोचियेगा ।
Comment by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 5:49pm
आदरणीय, मैं भी विद्यार्थी ही हूँ।परिमार्जन करना था,शुक्रगुजार हूं कि आपने इंगित किया,सादर।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 8, 2017 at 4:50pm

आदरणीय मनन जी ,, मैं तो ग़ज़ल का विद्यार्थी हूँ,, यहां बस काफिआ दोष के बारे में जानना चाहता था 

Comment by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 4:12pm
आदरणीय, इस ग़ज़ल में परिमार्जन होना है;वह करूँगा मैं।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 8, 2017 at 3:41pm

अच्छी ग़ज़ल है आदरणीय मनन कुमार जी,,, काफी के बारे में गुणीजनों से मार्ग दर्शन  चाहता हूँ की यहां पर काफिआ क्यों गलत है,,, क्या  "अ " काफिआ नहीं लिया जा सकता 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service