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झील ठहरी है बहुत वक्त से कंकड़ मारो -( ग़ज़ल ) -लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

2122    1122    1122    22

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प्यार  कहते  हैं  कि  हर  चाव  बदल  देता है
एक  मरहम  की  तरह   घाव  बदल  देता है /1

अश्क लेकर  भी किसी को न  तू रोते दिखना
कहकहा  आँख  का   बरताव   बदल   देता है /2

झील  ठहरी  है  बहुत  वक्त से  कंकड़ मारो
एक  कंकड़   ही  तो   ठहराव   बदल  देता  है /3

अजनवी  सोच  के   यूँ    दूर  न   बैठो  हमसे  
मिलना  जुलना  ही  मनोभाव  बदल  देता   है /4

माँ की ममता से मिली सीख ये  हमको यारो
हर किसी  पीर  को  सहलाव   बदल   देता है /5

काम आता न हो चाहे कि करो  कोशिश कुछ
हर  कमी   रोज  का   दुहराव  बदल   देता है /6


22 दिसम्बर 2015
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

Views: 1004

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2015 at 11:32am

आ० भाई गोपाल नारायण जी .अपनी उपस्थिति से ग़ज़ल का मान बढ़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2015 at 11:30am

आ० भाई आशुतोष जी .स्नेह और ग़ज़ल को मन देने के लिए आभार l

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2015 at 8:56pm

माँ की ममता से मिली सीख ये  हमको यारो
हर किसी  पीर  को  सहलाव   बदल   देता है /5---------------बढ़िया गजल धामीजी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 26, 2015 at 12:49am

आदरणीय भाई लअक्ष्मण जी ..जीवन के अनुभवों को ग़ज़ल के माध्यम से क्या खूब साझा किया है आपने कमाल की प्रस्तुति ..ढेरो दाद क़ुबूल करें ,,सादर बधाई के साथ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 25, 2015 at 11:42pm

aa0  bhai gumnam ji upasthiti ke liye hardik aabhar

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 25, 2015 at 6:41pm

अश्क लेकर  भी किसी को न  तू रोते दिखना
कहकहा  आँख  का   बरताव   बदल   देता है

वाह खूब वाह भाई जी .....................

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 25, 2015 at 7:13am

आ भाई नीलेश जी हार्दिक धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 25, 2015 at 7:12am

आ० भाई गिरिराज जी उपस्थिति और समझाईस के लिए हार्दिक धयवाद l

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 24, 2015 at 10:49pm

अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 24, 2015 at 11:33am

आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

एक  मरहम  की  तरह   घाव  बदल  देता है  --   इस मिसरे की बाबत मै आदरनीय रवि भाई जी से सहमत हूँ  , घाव बदल देता है , सही अर्थों मे उपयोग नही होरहा है ।

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