फ़िरोज़ा बेगम –लघुकथा -
असली नाम तो उसका शबनम बानो था मगर पूरा गॉव उसे फ़िरोज़ा बेगम पुकारता था!इसकी वज़ह थी कि वह निकाह वाले दिन फ़िरोज़ी सूट पहनी थी!सबने मना किया था कि यह शुभ रंग नहीं है!लेकिन वह ज़िद पर अडी रही! क्योंकि फ़िरोज़ी रंग उसका पसंदीदा रंग था!वह वैसे भी शुभ अशुभ में विश्वास नहीं करती थी!
शकील अहमद से उसकी मुलाक़ात एक शादी में हुई थी!शकील का व्यक्तित्व भी गज़ब का था!वह भी अप्रतिम सौंदर्य की मालकिनथी ! दौनों ने एक दो मुलाक़ात में ही निक़ाह का फ़ैसला कर लिया !
शकील की महलनुमा कोठी में आते ही पहले ही दिन उसके सारे सपने चकनाचूर हो गये!शकील की पहले से ही दो और बेगम थी!शबनम को अपना प्यार बांटना गंवारा नहीं था! उसी दिन बिना आगा पीछा सोचे वह अपनी मॉ के पास लौट आई!शकील ने उसे लाख मनाने की कोशिश की!हज़ारों सब्ज़बाग दिखाये मगर शबनम टस से मस नहीं हुई!उसकी एक ही रट थी कि या तो उन दौनों बेगमों को घर से बाहर करो या तुम उनको छोडकर मेरे साथ रहो!मगर यह शकील के लिये मुमकिन नहीं था क्योंकि वे दौनों ही बेगम नवाबों के खानदान से थीं!उनको छोडना शकील की हैसियत पर सवालिया निशान लगा देता!
शबनम एक मामूली खानदान से थी! उसके परिवार में उसकी मॉ के अलावा कोई नहीं था !इसके बावज़ूद भी वह कोई समझौता करने को राज़ी नहीं थी!
शबनम के प्यार का फ़ूल खिलने से पहले ही मुरझा गया! दकियानूसी रीति रिवाज़ों के भंवर में फ़ासले बढते गये!
शकील और शबनम का प्यार बहु विवाह की कुप्रथा के फ़ासले को मिटाने में नाकामयाब हो गया!वे सदैव के लिये ज़ुदा हो गये!
धीरे धीरे पूरे गॉव में यह अफ़वाह ज़ोर शोर से फ़ैल गयी कि यह सब अपशगुनी फ़िरोज़ी सूट की वज़ह से हुआ था !
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा जी!आपने लघुकथा को अमूल्य समय दिया,सराहना की!उसका विश्लेषण किया!पुनः आभार!
उसके फिरोज़ी सूट से उसके नाम और दुर्भाग्य को जोड़ते हुए आपने जिस प्रकार का ताना बाना बुना है ,बहुत गहरे तक जाता है ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस रचना पर आदरणीय तेजवीर सिंह जी
हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना जी!आपने लघुकथा को अपना अमूल्य समय दिया!सराहना की!सार्थक विवेचना की!पुनः आभार!
पनपते अंधविश्वास को केंद्रित कर लिखी लघु कथा अपने प्रयास में सफल है। हार्दिक बधाई आदरणीय इस प्रस्तुति पर।
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