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जिसमें जितनी कीमत उतनी- पंकज मिश्र

16 रुक्नी ग़ज़ल
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नफ़रत का बाज़ार सजा है; हममें जितनी, कीमत उतनी।
इच्छाओं का दाम लगा है, खुदमें जितनी, कीमत उतनी।।

इस पुस्तक के पन्नों पर तुम, नैतिकता क्यों कर लिखते हो।
मानवता की छद्म व्याख्या, इसमें जितनी, कीमत उतनी।।

व्यवहार और समाचार में, सिर्फ एक सम्बन्ध यही है।
नमक मिर्च की हुई मिलावट, इनमें जितनी, कीमत उतनी।।

कलयुग वाले महाराज के, दरबारी मानक बदले हैं।
चाटुकारिता भरी हुई है, जिसमें जितनी, कीमत उतनी।।

पंकज खुद में झूठी ख़ुश्बू, तुम भी भर लो अभी समय है।
इस युग की है यही हक़ीक़त, तुझमें जितनी, कीमत उतनी।।

~~~~~~~~~~~~~~~~~|||||||~~~~~~~~~~~~~~~
मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 8, 2015 at 7:05pm
आदरणीय मिथिलेश सर सादर प्रणाम्
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 8, 2015 at 7:05pm
आदरणीय सतविंदर कुमार जी सादर आभार और यथोचित अभिवादन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 8, 2015 at 6:44pm

आदरणीय पंकज जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है बधाई 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 8, 2015 at 7:46am
'चाटुकारिता भरी हुई है,जिसमे जितनी,कीमत उतनी'
सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज जी
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 7, 2015 at 11:08pm

आदरणीय मनन सर सादर अभिवादन

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 7, 2015 at 11:08pm

आदरणीय मोहन सर सादर प्रणाम्

Comment by Manan Kumar singh on November 7, 2015 at 9:14pm
बहुत बढ़िया
Comment by मोहन बेगोवाल on November 7, 2015 at 7:59pm

 आदरणीय पंकज जी, बहुत अच्छी ग़जल कहने पर बधाई कबूल करें 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 7, 2015 at 3:24pm
आदरणीय राहिला जी सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 7, 2015 at 3:23pm
अनुज आमोद और आदरणीय श्याम नारायण जी सादर धन्यवाद

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