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22—22—22—22—22—2

 

गुलशन में फिर भौंरा आया,  बढ़िया है

फूलों से काटों का नाता,  बढ़िया है

 

आज उफ़क तक सरसों देखी, दिल बोला-

नीली चूनर, पीला लंहगा,  बढ़िया है

 

मकसद अपना हँसकर वो बतलाते ये

पैसा पैसा केवल पैसा, बढ़िया है

 

चाहत के पिंजरे में हमने कैद रखी

छोटी सी संतोषी चिड़िया, बढ़िया है

 

बादल ने जब दिल पर खंजर फेंके तब

सब कहते है सावन आया, बढ़िया है

 

एक जगह जब पानी ठहरे, डरता हूँ

पत्तों से फिर पानी फिसला, बढ़िया है

 

बूंदों की बारात दुआरे से बोली

खेतों का हरियाला बन्ना, बढ़िया है

 

अंधियारे से रात मिलन को आतुर थी

सूरज थोड़ा ठिठका ठहरा, बढ़िया है

 

उसने फिर दीवान सुनाया, क्या कहते?

सिर्फ हमारे मुंह से निकला- बढ़िया है

 

कहने को बस कहना है, तो बेहतर ये

अपनी जेब में रख लो अपना बढ़िया है

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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Comment by Vijay Joshi on January 30, 2016 at 9:32pm
आपका भर पूरा जीवन प्रशानिक सेवा के बाद भी साहित्य को समर्पित है। जानकर ख़ुशी हुई।
विजय जोशी '
शीतांशु'

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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 1, 2015 at 12:27am

आदरणीय  Ganga Dhar Sharma 'Hindustan'  जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 1, 2015 at 12:26am

आदरणीय  Dr Ashutosh Mishra जी  ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार

Comment by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on October 31, 2015 at 10:55pm
मिथिलेश जी ! बढ़िया ...बहुत बढ़िया...यकीनन बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल...इसके लिए बढ़िया सी बधाई स्वीकार करें...
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 30, 2015 at 5:06pm

आदरणीय मिथिलेश जी आज तो आपकी कई ग़ज़लें पढने का मौका मिला ..एक से बढ़कर एक रचना ..इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधायी स्वीकार करें सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 12:51pm

आदरणीय नादिर सर, आप जैसे गज़लकार से दाद पाना मेरे लिए मायने रखता है, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 12:51pm

आदरणीय गिरिराज सर, आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 12:50pm

आदरणीय पंकज जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 12:50pm

हा हा हा ........ आदरणीय नीरज जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 12:49pm

आदरणीय गोपाल सर, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 

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