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एक ज्वलंत समस्या को शाब्दाकार करने हेतु आपको बधाई . सादर.
अहम बचा रहें इसके लिय सच में बेरोजगार पति को काँच के बर्तन के समान ही संभालना होता | बढ़िया कथा दी
'कांच के बर्तन की तरह सँभालने की ज़िम्म्म्मेदारी ' बेरोजगार पति की मानसिक दशा की कांच के बर्तन से तुलना बहुत सटीक की है आपने आदरणीया , पुरुष अहम् होता ही ऐसा है , बधाई इस रचना पर आदरणीया कांता जी
आदरणीया कांता जी, आपने आज समाज में उपजी एक नई समस्या को बहुत सधे ढंग से शाब्दिक किया है. माता पिता अपने बेरोजगार बेटे के लिए नौकरीशुदा बहू इस आशा में लाते है कि आगे चलकर बेटा भी थोड़ा बहुत कमाने लगेगा और दोनों का जीवन बढ़िया चलेगा. लगभग ऐसी ही उम्मीद में बेटी के माता पिता भी ऐसा विवाह कर देते है क्योकि भारत के समाज में बेटी की शादी करना क्या होता है इससे सभी वाकिफ़ है. किन्तु इस विवाह के जो भयावह परिणाम सामने आते है ये आपकी लघुकथा में बखूबी उभरकर आया है. आपने कथ्य के मर्म को बहुत ही सधे ढंग से शाब्दिक किया है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई
एक निवेदन यदि उचित लगे तो-
//नजदीक जाकर गौर से देखी तो उनकी आँखें लाल हो रही थी । // आगे आप पति के लिए उसका संबोधन प्रयोग कर रही है इसलिए मुझे लग रहा है कि वाक्य ऐसा होना चाहिए-
//नजदीक जाकर गौर से देखा, तो उसकी आँखें लाल हो रही थी । //
सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय कांता जी!बेहद मर्मस्पर्शी लघुकथा हुई है!
आदरणीय कान्ता जी लघु कथा बहुत अच्छी लगी।
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