For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

  

उलटी गंगा

बात जब तक  घर में  थी, सभी परिवार के मैंबर  उसे समझा रहे थे । ये तुम  गलत कर रहें हो ,रौशनी का ख्याल हमें पहले रखना चाहिए था, न कि अब हमसाया के  घर की तरफ खिड़की रख कर । मगर वह अपनी फौजियों सी  ज़िद छोड़ नहीं  रहा था ।

पड़ोसी तो इस कि बारे पहले ही विरोध दर्ज करवा चुके थे, “क्योंकि कि बिल्डिंग के पीछे कोई अधिकारित रास्ता न होने की वजह से अपना हक भी नहीं बनता है” उसकी घर वाली ने कहा।  पड़ोसी  के  पास अब क़ानूनी करवाई कि सिवाए कोई चारा नहीं रहा था ।  पर फिर भी उन्होंने यही ठीक समझा कि पहले मसला पंचायत में लाया जाए ।  जब कोई खुद को ज्यादा अक्लमंद और ऊम्र भर वो दूसरों को आर्डर ही देता रहा हो, उसके लिए किसी की बात मानना कठिन होता है ।

  ज्यादातर लोगों को  एक तो उसका बात करने का ढंग और दूसरा खुद को हर बात पर पूरी तरह पाक साफ बताना, घर वाले उसे अक्सर यही समझाते थे  कि यहाँ तेरी फौजी  वाली बात नहीं चलनी, हमें  इन लोगों  के साथ ही  रहना है ।

“मैं इन कि साथ कैसे बात कर सकता हूँ, जो मेरे बराबर के नहीं है” ये बात वो हर शख्श से कहता रहता था । इसी लिए लोग उसे पसंद नहीं करते हैं । 

पड़ोसी की शिकायत पर  पंचायत  ने उसे अगले रोज़ गुरुद्वारे में बुला लिया ।  पंचायत मैंबरों  के साथ साथ और भी बहुत से  लोग गुरुद्वारे में इकठ्ठे हो गए , पर  वह अब भी  गलती मानने को तैयार नहीं था और पंचायत में आ कर भी  अपनी बात से टस से मस नहीं हो रहा था ।

 मगर  अब जो  उसके विरोध में आई ,वह उस घर की औरत थी , जो  कह  रही थी "मैं  भी जाट की  पुत्री हूँ,  देखती हूँ कैसे आप इस खिड़की को बंद नहीं करते" , उसकी तरफ ध्यान न देते हुए, वह उल्टा पंचायत मैंबरों  पर उसका साथ देने का इल्जाम धरने लगा, सभी इकठ्ठे हुए लोग भी अंदर से गुस्से से  भरने लगे, बात किसे किनारे न लगती  हुई देख,एक मैंबर ने उठ कर कहा, दार जी, आप फ़ौजी रहे हैं, आप ने देश की सेवा की हम सभी आप की इज़्ज़त करते हैं , मगर  आज तो आप तो गलती पर  गलती किये जा रहे हो  ।

तब अचानक ही  उस का अपना  लड़का उठ खड़ा हुआ, सरपंच व मैंबर साहिबान से मुखातिब होते हुए उसने कहा,  “ ये मेरा बाप है, मैं इसकी गलतियाँ कि मुआफी  मैं तुमसे मांगता हूँ” आप ने माँ बाप को बच्चों की गलतियाँ के लिए मुआफी मांगते देखा होगा, मगर आज मुझे अपने बाप की  शिकायत सुननी पड रही है और मैं इस कि  लिए,  आप जो फैसला करेंगे वो हमें मानना होगा"। ये सुन कर वह  भीगी बिल्ली बन बैठ गया और सभी लोग हैरान थे, उनके चेहरों  पर  चुप छा गई  थी,उन्हें लगा जैसे  गंगा उलटी बहना शुरू हो  गई है  ।

 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 387

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on October 5, 2015 at 6:51pm

आदरणीय लघुकथा सुंदर और सशक्त होते हुए भी मैं आदरणीय कान्ता रॉय जी की टिप्पणी से सहमत हूँ। वैसे एक अलग विषय की इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 5, 2015 at 3:29pm
आदरणीय मोहन जी वाकई 'उल्टी गंगा' वाली बात है।हार्दिक बधाई
Comment by kanta roy on October 5, 2015 at 3:25pm

आदरणीय मोहन जी आप की कथानक का सशक्त होना मुझे बहुत भाया  है।  विषय बिलकुल नया है और प्रस्तुति भी बढ़िया लेकिन बीच के कुछ हिस्से में कथा में बिखराव सा महसूस किया है मैंने,   लेकिन पंच मुझे भा गया है।  बरी जबरदस्त लघुकथा हुई है।  बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service