"आजकल सर काफी बदल गए हैं ,नोटिस किया ?"
तीन चार रोलिंग चेयर , कहने वाली की तरफ घूम गईं I
"हाँ ss ...मै भी देख रही हूँ ,पहले तो एक्स रे जैसी आँखें ,ऊपर से नीचे तक हमें घूरती रहती थीं I पर आज कल तो एकदम झुकी रहती हैं Iक्या हो गया मशीन को ?"
"वैरी फनी ,पर सच में यार ,कुछ भी ख़ास पहनो ,बार बार अपने केबिन में बुला लेते थे बहाने से "I
"हाँ ss .. इतना कांशस कर देते थे न कभी कभी , पर अब तो गुड मॉर्निंग का जवाब भी नज़रें नीची कर के देते हैं, चक्कर क्या है ?"
"मुझे पता है " ये रोलिंग चेयर वाली नहीं थी ,झाड़ू वाली थी I
"क्या पता है ?" सब रोलिंग चेयर उस तरफ घूम गईं I
"साहब की बेटी तीन महीने की ट्रेनिंग के लिए अपने ऑफिस में आने वाली है ,और फिर शायद यहीं पक्की भी लग जाय "I
"ओss हो ss..,तो ये बात है ..,हूँ ss ...."इस लम्बी 'ओहो' और' हूँ '..में सभी शामिल थीं ,नीची चेयर वाली,ऊँची चेयर वाली ,झाडू वाली ..I
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
वाह्ह्ह्ह वाह्ह इस लघु कथा की जितनी भी तारीफ की जाए कम होगी ये स्थिति आज कामकाजी महिलाओं के लिए आम हो गई है चाहे वो महिला किसी भी श्रेणी की हो जिसकी जो आदत है बाज नहीं आता किन्तु जब अपनी बेटी सामने हो तो अच्छे अच्छे बगुलाभगत बन जाते हैं बहुत बढ़िया मर्म है दिल से बधाई लीजिये प्रिय प्रतिभा जी.
आदरणीय धर्मेन्द्र जी ,रचना पर आकर मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार
रचना का आपके द्वारा इतना मुखर अनुमोदन मुझे अभिभूत कर रहा है ,आपका ह्रदय तल से आभार आदरणीय मिथिलेश जी
कार्य स्थल में महिलाओं को जिस तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है उसका दंश ऊँची चेयर सेलेकर झाड़ू वाली तक सब बराबर महसूस करती हैं ,कथा की अंतिम पंक्तियों का मर्म कुछ ऐसा ही है ,कथा का शीर्षक 'औरतें ' भी इसी भाव को बयां करता है , आप ने रचना पर आकर मुझे मान दिया और मेरा उत्साह वर्धन किया आपका ह्रदय तल से आभार आदरणीय रवि प्रभाकर जी सादर
जर्बदस्त व तीक्ष्ण कटाक्ष करने में सफल रही अापकी इस सशक्त रचना के लिए आपको ह्दय तल से असीम शुभकामनाएं आदरणीय प्रतिभा जी । मुझे इस लघुकथा की अंतिम पंक्ित एकदम अनावश्यक लगी। /साहब की बेटी तीन महीने की ट्रेनिंग के लिए अपने ऑफिस में आने वाली है ,और फिर शायद यहीं पक्की भी लग जाय / कथा यदि यहीं समाप्त हो जानी चाहिए थी। सादर शुभकामनाएं ।
अच्छी लघुकथा है आदरणीया प्रतिभा जी, दाद कुबूल कीजिए
बढ़िया बढ़िया ..............शानदार जानदार
संवाद शैली का जादू चल गया
कथ्य जिस झटके से उभरा है लघुकथा सफल कर गया ....
बातों बातों में बड़ी बात ....
दिल से दाद और ढेर सारी बधाई
ये लघुकथा लिखी नहीं गई है बल्कि हो गई है. इसे कहते है लघुकथा कहना.... वाह वाह
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