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देख गमों को मेरे वे मुस्कुराते बहुत हैं,



उनके गमले में खुशबू हैं बिखरे हुए ,
मेरे दामन हैं  काँटों से निखरे हुए ,
वो  मखमल की सेजों पे भी रोते हैं,
चेहरे धूल में हमारे रहते हैं निखरे हुए,

देख गमों को मेरे वे मुस्कुराते बहुत हैं,
चलो इसी बहाने उन्हें मुस्कुराना आ गया,
मेरे दर्दों को सुन उन्हें सुकून मिलता है ,
इसी बहाने  मुझे गजल अब गाना आ गया,

 मेरे क़दमों के निशां पे वे चलते थे कल ,
और कहते थे उनको जीना आ गया,
आज देखा मैंने उनको ऐसे लिबास में
की दिल में चुभन माथे पे मेरे पसीना आ गया,

ये रस्मों रिवाजों का खेल है ,
धुल से उठ खिल गया कोई बागों में ,फूल में 
कोई रिश्तों के चादर में उलझा रहा ,
कोई गुम हो गया एक ही भूल में ,

मैंने देखा उन्हें आज बड़े गौर से,
लगा उनका भी बहुत  कुछ  है खोया हुआ ,
वो शीशे के महलों में भले सोते हों ,
पर चेहरा उनका भी था रात भर रोया हुआ ,

उनकी नजरों ने मेरी नजर से कहा,
की ज़माने  हुए मुझे चैन से सोये हुए,
 तुम तो गजलों और गीतों में खोये रहे और,
दिन हुए बहुत  तुम्हारे कंधे  पे मुझको  सिर रख के रोये हुए 

क्या कहूँ  मै रस्मों रिवाजों में इस कदर खो गया ,
कि अरमान  "राजीव " के, रेत की तरह हैं आज   बिखरे हुए ,
आज जाते हैं पर मुझको कसम ये रही की ,
जरुर आयेंगे हम और हटायेंगे हम , जुल्फ गालों पे कल जो होंगे  तेरे बिखरे हुए

राजीव कुमार पाण्डेय " माहिर "


 

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2011 at 8:52am
मैंने देखा उन्हें आज बड़े गौर से,
लगा उनका भी बहुत कुछ है खोया हुआ ,
वो शीशे के महलों में भले सोते हों ,
पर चेहरा उनका भी था रात भर रोया हुआ ,

सुंदर ख्याल , बधाई |

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